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ते प्रसादपत्री. विज्ञप्तिपत्र शिष्य लखे, कां सङ्घ लखे; गुरु तेनो जवाब आपता ज होय, परन्तु तेवा प्रत्युत्तर पत्र एटले के प्रसादपत्र हजी सुधी क्यांय प्रकाशित थया होवानुं जाणमां नथी. ते आ अङ्कमा प्रथम वखत ज प्रकट थई रह्या छे. गच्छपति श्रीविजयप्रभसूरिए लखेल ऋण प्रसादपत्रीओ मळी छे, ते त्रणे अहीं सळंग आपेल छे. तेमां प्रथम पत्र (क्र. ५२) तथा त्रीजो पत्र ( क्र. ५४) आखा मळ्या छे, बाकीनो एक (क्र. ५३) अधूरो मळ्यो छे. त्रणे पत्रोनो भाषावैभव, समासप्रचुर सुदीर्घ वाक्यरचना - बधुं कादम्बरीनी आछेरी झलक दर्शावी जाय छे. पद्यरचना पण प्रौढ छे.
प्रथम प्रसादपत्र श्रीसौभाग्यविजयजी उपर लखायो जणाय छे. प्रथम पत्रना बे हिस्सा छे. प्रथम हिस्सो गच्छपतिए लखेल पत्ररूप छे. तेमां द्वीप बन्दिर (दीव) नो उल्लेख छे, पण कोने अने क्यां लखेल छे ते जाणवा नथी मळतुं. पण बीजा हिस्सामां जे १० पद्योनो लघु पत्र छे, ते गच्छपति साथेना कोई विद्वान् मुनिवरे अलगथी लखीने प्रसादपत्र साथै जोडी दीधेल पोतानी चिठ्ठीरूप छे. तेमां सौभाग्यविजयजीनुं नाम पण (१०) वांचवा मळे छे, अने तेओ नवीननगरनवानगर एटले के जामनगरमां बिराजमान होवानुं (२) पण जाणी शकाय छे. ते आधारे आ प्रसादपत्र पण तेओने ज, तेमना पत्रना जवाबरूपे लखायो छे एम मानी शकाय .
सौभाग्यविजयजी विषे विशेष माहिती उपलब्ध थती नथी, परन्तु पत्रमां गच्छपतिए तेमना प्रत्ये जे आदर दर्शाव्यो छे ते जोतां तेओ गच्छस्थविर तथा पर्यायवृद्ध मुनिवर होय तेवुं अनुमान थाय छे. गच्छपति ते समये द्वीप (दीव) मां बिराजे छे, अने त्यां पोतानी निश्रामां थयेल धर्मकृत्यो विषे जे सद्भावथी वर्णन लखे छे ते हृदयस्पर्शी लागे छे. श्रावकोनी सभामां सघळा सिद्धान्तोनो स्वाध्याय थतो हशे अने तेना अन्वये उत्तराध्ययननो स्वाध्याय; तृतीय - ठाणांगसूत्रनी (सटीक) वाचना; साधुसाध्वीओनां पठन-पाठन; नाण मांडीने उपधान - वहन, ब्रह्मचर्यादिव्रतोनुं उच्चारण; ऊजमणां सह तपस्याओ, माळारोपण, दीनजनअनुकम्पादान; पर्युषण-अमारिप्रवर्तनादि कृत्योनुं विशद वर्णन केटलुं सन्तर्पक छे ! गच्छपति आ बधांमां 'श्रीमद्ध्येय' ना ध्यानना प्रभावने कारण गणावे छे, जे तेमनी गरिमानो संकेत आवी जाय छे. पत्रना मङ्गलश्लोकोमां सुविधिनाथ
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