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जान्युआरी - २०१३
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प्रवर्तता हता तेनी पण झलक आमां मळे छे..
'पउमचरियं' जेवा उत्कृष्ट चरित्रग्रन्थना कर्ताना सम्प्रदाय विशेनो श्रीसागरमल जैननो संशोधनलेख मुद्दानी तलस्पर्शी चर्चा करे छे. ग्रन्थना आन्तर प्रमाणो अने बाह्य प्रमाणोनी सविस्तर चर्चा-परीक्षा-समीक्षा करवा द्वारा लेखके ए सिद्ध करवानो प्रयत्न कर्यो छे के ग्रन्थकर्ता दिगम्बर के यापनीय संघना नहि पण संघभेदनी पूर्वेना जैनाचार्य छे. परस्पर आदर अने समभाव जाळवी राखीने एक-बीजाना विचारोनी समीक्षा अने तथ्योनी छानबीन करी शकाय छे, भिन्न अभिप्राय पण निखालसपणे तथ्यना आधारे प्रगट करी शकाय छे - एनुं निदर्शन प्रस्तुत लेख करे छे. ऊगता अभ्यासीओए-संशोधकोए आ लेख मननपूर्वक वाचवा जेवो छे.
वीरनिर्वाण संवत्नी गणनामां माथुरी वाचना तथा वालभी वाचनामां १३ वर्ष- अन्तर रहे छे, तेनां कारणोनी चर्चा करतो मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयनो लेख ध्यानार्ह छे. आ विषयमां महान आचार्यो वच्चे मतान्तर पड्यो, पण आपणा पूर्वजोए भिन्न मतनी पण नोंध करी एमनो आदर राखेलो. प्रस्तुत लेखमां आ तफावत पड़वानां कारणोनी सविगत अने अभ्यासपूर्ण चर्चा थई छे. तज्ज्ञ विद्वानो आ चर्चा-विचारणामां पोतानो अभिमत आपे अने गूंच ऊकेलवामां पोतानो फाळो आपे एवी अपेक्षा रहे छे.
ज्ञानोपयोग अने दर्शनोपयोग केवलीने क्रमिक होय के युगपत् होय ए बाबतमां बे मत बहु जूना समयथी चाल्या आवे छे. आ विषयनी सर्वग्राही चर्चा करतो विस्तृत लेख त्रैलोक्यमण्डन वि० ए लख्यो छे. नवा अभ्यासीने पण समजाय ते रीते आ अभ्यासलेख लखायो छे. बन्ने पक्षोनी मान्यता उपस्थित कर्या पछी, लेखके पोताना अध्ययनथी प्राप्त मौलिक चिन्तन रजू कयुं छे. बन्ने मतो वच्चे समन्वयनी भूमिका सुग्रथित रूपे अने तर्क पुरस्सर आमां रचाई छे. आ विषयमां वधु ऊहापोह थवो जोईए.
जैन मन्दिर नानी खाखर-३७०४३५
जि. कच्छ, गुजरात
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