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________________ २०६ अनुसन्धान-६० : विज्ञप्तिपत्र-विशेषाङ्क - खण्ड १ रचना नथी करी; विविध स्रोतोमांथी कथाओनो, ग्रन्थकारना शब्दोमां ज, सारांश के संक्षेप रूपे, संग्रह ज को छे. प्राकृत भाषामां रचित, कथाओना सागर जेवा आ ग्रन्थनी हस्तप्रतो पण गणीगांठी ज मळे छे – अने ते पण अत्यन्त अशुद्ध. ___'कहावली'मां कथा, इतिहास, तत्त्वज्ञान, समाजव्यवस्था, साहित्यनी तत्कालीन विधा-आ बधुं समाविष्ट छे. जैनविद्या अने भारतीयविद्याना अभ्यासीओ माटे आ ग्रन्थ घणी बधी अभ्याससामग्री पूरी पाडे छे. भाषाशास्त्रीओ माटे आ ग्रन्थ एक रसथाळ जेवो छे. कुल १६८ जेटली नानी-मोटी कथाओ प्रथम भागमां छे. सम्पादके सात परिशिष्टो योज्यां छे. मोटाभागनी कथाओनां मूल स्रोत अथवा समान कथास्थानो सम्पादके शोधीने परिशिष्टमां आप्यां छे - जे तुलनात्मक अध्ययन माटे अति उपयोगी थशे. ग्रन्थना प्रारम्भे डो. दलसुखभाई मालवणियानो अंग्रेजी लेख तथा डॉ. मधुसूदन ढांकीनो गुजराती लेख आपेल छे – जे ग्रन्थनी साथे संकळायेल महत्त्वनी विगतो पूरी पाडे छे. भ्रष्ट-अशुद्ध पाठोनी जग्याए विषय/सन्दर्भ अनुसार नवो शुद्ध पाठ विचारीने सम्पादके कौंसमां आप्यो छे. ज्यां पाठ खण्डित हतो त्यां मूल स्रोतरूप ग्रन्थोमांथी अथवा समान पाठवाला ग्रन्थमाथी आवश्यक शब्द के अंश उद्धृत करीने ग्रन्थ पूर्ण कर्यो छे. आ काम केटलुं जफावाळु अने मानसिक कसरत करावनाएं छे ते तो आ क्षेत्रना अनुभवीओ ज समजी शके. ज्यां सुधारेलो पाठ पण सम्पादकने सन्तोषकारक नथी लाग्यो त्यां सम्पादके ते पाठ प्रश्नचिह्न साथे मूक्यो छे. पोताने सूझ्युं ते ज खरं, पोतानो शब्द अन्तिम – एवो दावो करवाथी सम्पादक दूर रह्या छे. संशोधक-सम्पादकनो आ साचो धर्म छे. सम्पादकनी संशोधननिष्ठा आमां प्रतिबिम्बित थाय छे. मूल पाठमां शंका रहेती होय त्यां प्रश्नचिह्न मूकीने आगळ वधq एटला माटे जरूरी छे के आवा स्थाने कोई अभ्यासीने शुद्ध पाठ विचारवानी प्रेरणा मळे अने जो तेने सूझी आवे तो सरवाळे ग्रन्थने लाभ थाय. आजे 'अशुद्ध' पाठने 'शुद्ध' करवा जतां उपलब्ध शुद्ध पाठने पण 'सुधारी' नाखवानी अति साहसिकता क्यांक जोवा मळे छे. एमां ग्रन्थना संशोधन करतां पोतानी 'प्रतिभा'- प्रकाशन करवानी वृत्ति ज काम करती होय एम मानवू पडे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520561
Book TitleAnusandhan 2013 03 SrNo 60
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages244
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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