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श्री देवसूरिजीनां संसारी माता 'रूपाई' ओ पण दीक्षा लीधी हती तेवी औतिहासिक विगत पत्र-६ श्लोक १०६मां नोंधाई छे.
(पत्र ८) १०१ श्लोकोमा विस्तरेलो आ विज्ञप्तिपत्र पण गच्छपति विजयप्रभसूरि उपर उपाध्याय श्रीमेघविजयजीनी काव्यमय विज्ञप्तिरूप छे. आ अंकगत तेमना त्रण विज्ञप्तिकाव्यो उपरांत, 'विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रह'मां मुद्रित तेमना, 'मेघदूतसमस्यालेख' तथा अन्य एक विज्ञप्तिपत्र-एम २ पत्रो, अनुसन्धानना ३३मा अंकमां प्रकाशित पत्र 'सेवालेख' - अम तमाम प्रगट पत्रोनी संख्या ७ जेटली थाय छे. एवो वहेम पडे छे के आ कवि-साधु निरन्तर काव्यविहार अने नूतन ग्रन्थनिर्माणमां ज मशगूल रहेतां हशे !
पत्रना प्रथम २२ पद्योमां श्रीऋषभदेवनी स्तुति छे. विविध भावभङ्गीओ वडे एकज जिननी आ स्तवना असामान्य प्रतिभा सिवाय असम्भवित छे. पछीनां २३ थी ४७ काव्योमा गच्छपति ज्यां बिराजे छे ते 'वगडी' नगरनुं वर्णन छे. नगरोनुं वर्णन ए विज्ञप्तिपत्रोनो एक आगवो विशेष छे. उपलब्ध पत्रोमां आवतां नगरवर्णनोनो विशद अभ्यास थाय तो कोईने Ph.D. नी पदवी मळी शके तेटला ते वर्णनो समृद्ध छे.
आ पछी, प्रतिलिपिकारे मूकेला शीर्षकने यथार्थ मानीए तो, नडुलाई शहेरमां वर्तता उपाध्याय मेघविजयजी प्रासङ्गिक नगरवर्णन (नाम नथी) पूर्वक विज्ञप्ति करतां धर्मकृत्योर्नु बयान आपे छे. ४८ थी ७९ पद्योमां ते पूर्ण थाय छे. त्यां 'इति समाचाराः' कहीने वात आटोपी छे. छेल्ले २२ पद्योमा पुनः गुरुनुं वर्णन-स्तवन थयुं छे. त्यां पत्र समाप्त थाय छे. नीचे लिपिकारे करेली नोंध मुजब आ मूळ पत्र जोधपुरना प्राच्य शोधसंस्थानमा छे, अने कर्ताए स्वहस्ते लखेल होवानुं अनुमानवामां आव्युं छे.
आ पत्र पण पत्र २-३ नी माफक ज मुनि सुयश-सुजसचन्द्र विजयजी तरफथी प्राप्त थयेल छे.
. (पत्र ९) आ पत्र द्वीप-दीवमा रहेला गच्छपति विजयप्रभसूरि उपर उपाध्याय विनयविजय गणिए रामपुरथी लख्यो छे. मागशर वदि ८ भृगुवारे लखायेल
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