SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९० अनुसन्धान- ५९ (११) पउमचरियं में सम्यक्दर्शन को परिभाषित करते हुए यह कहा गया है कि जो नव पदार्थों को जानता है वह सम्यग्दृष्टि है६ । पउमचरियं में कहीं भी ७ तत्त्वों का उल्लेख नहीं हुआ है । पं. फूलचन्दजी के अनुसार यह साक्ष्य ग्रन्थ के श्वेताम्बर होनें के पक्ष में जाता है । किन्तु मेरी दृष्टि में नव पदार्थों का उल्लेख दिगम्बर परम्परा में भी पाया जाता है अत: इसे ग्रन्थ के श्वेताम्बर होने का महत्त्वपूर्ण साक्ष्य तो नहीं कहा जा सकता । दोनों ही परम्परा में प्राचीन काल में नव पदार्थ ही माने जाते थे, किन्तु तत्त्वार्थसूत्र के पश्चात् दोनों में सात तत्त्वों की मान्यता भी प्रविष्ट हो गई | चूंकि श्वेताम्बर प्राचीन स्तर के आगमों का अनुसरण करते थे, अत: उनमें ९ तत्त्वों की मान्यता की प्रधानता बनी रही । जबकि दिगम्बर परम्परा में तत्त्वार्थ के अनुसरण के कारण सात तत्त्वों की प्रधानता स्थापित हो गई । (१२) पउमचरियं में उसके श्वेताम्बर होने के सन्दर्भ में जो सबसे महत्त्वपूर्ण साक्ष्य उपलब्ध है वह यह कि उसमें कैकयी को मोक्ष की प्राप्ति बताई गई है। इस प्रकार पउमचरियं स्त्री मुक्ति का समर्थक माना जा सकता है । यह तथ्य दिगम्बर परम्परा के विरोध में जाता है । किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यापनीय भी स्त्रीमुक्ति तो स्वीकार करते थे, अत: यह दृष्टि से यह ग्रन्थ श्वेताम्बर और यापनीय दोनों परम्पराओं से सम्बद्ध या उनका पूर्वज माना जा सकता है । (१३) इसी प्रकार पउमचरियं में मुनि को आशीर्वाद के रूप में धर्मलाभ कहते हुए दिखाया गया है,३९ जबकि दिगम्बर परम्परा में मुनि आशीर्वचन के रूप में धर्मवृद्धि कहता हैं । किन्तु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि धर्मलाभ कहने की परम्परा न केवल श्वेताम्बर है, अपितु यापनीय भी है । यापनीय मुनि भी श्वेताम्बर मुनियों के समान धर्मलाभ ही कहते ३६. पउमचरियं, १०२/१८१ । ३७. अनेकान्त वर्ष ५, किरण १ - २ तत्त्वार्थ सूत्र का अन्त: परीक्षण, पं. फूलचन्दजी पृ. ५१ । ३८. सिद्धिपयं उत्तमं पत्ता- पउमचरियं ८६ / १२ । ३९. देखें, पउमचरियं इण्ट्रोडक्सन पेज २१ ।
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy