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________________ अनुसन्धान-५९ के बाद कहीं देवदूष्य का ग्रहण भी दिखाया जाता है ।२३ ऋषभ, भरत, महावीर आदि अचेलकता तो स्वयं श्वेताम्बरों को भी मान्य है । अतः पं. परमानन्द शास्त्री का यह तर्क ग्रन्थ के दिगम्बरत्व का प्रमाण नहीं माना जा सकता है ।२४ (९) पं. परमानन्द शास्त्री के अनुसार पउमचरियं में नरकों कि संख्या का जो उल्लेख मिलता है वह आचार्य पूज्यपाद के सर्वार्थसिद्धिमान्य तत्त्वार्थ के पाठ के निकट है, जबकि श्वेताम्बर भाष्य-मान्य तत्त्वार्थ के मूलपाठ में यह उल्लेख नहीं है। किन्तु तत्त्वार्थभाष्य एवं अन्य श्वेताम्बर आगमों में इस प्रकार के उल्लेख उपलब्ध होने से इसे भी निर्णायक तथ्य नहीं माना जा सकता है । इसी प्रकार नदियों के विवरण का तथा भरत और ऐरावत क्षेत्रों में उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल के विभाग आदि तथ्यों को भी ग्रन्थ के दिगम्बरत्व के प्रमाण हेतु प्रस्तुत किया जाता है, किन्तु ये सभी तथ्य श्वेताम्बर ग्रन्थों में भी उल्लेखित है ।२५ अतः ये तथ्य ग्रन्थ के दिगम्बरत्व या श्वेताम्बरत्व के निर्णायक नहीं कहे जा सकते । मूल परम्परा के एक होने से अनेक बातों में एकरूपता का होना तो स्वाभाविक ही है । पुनः षटखण्डागम, तिलोयपण्णत्ती, तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि आदि दिगम्बर टीकायें पउमचरियं से परवर्ती है अत: उनमें विमलसूरि के पउमचरियं का अनुसरण देखा जाना आश्चर्यजनक नहीं है किन्तु इनके आधार पर पउमचरियं की परम्परा को निश्चित नहीं किया जा सकता है। पूर्ववर्ती ग्रन्थों के आधार पर पूर्ववर्ती ग्रन्थ की परम्परा को निश्चित नहीं की जा सकती है । पुनः पउमचरियं में तीर्थकर माता के १४ स्वप्न, तीर्थकर नामकर्मबन्ध के बीस कारण, चक्रवर्ती की रानियों को ६४००० संख्या, महावीर के द्वारा मेरुकम्पन, स्त्रीमुक्ति का स्पष्ट उल्लेख आदि अनेक ऐसे तथ्य है जो स्त्री मुक्ति निषेधक दिगम्बर परम्परा के विपक्ष में जाते हैं । विमलसूरि के सम्पूर्ण ग्रन्थ में दिगम्बर शब्द का अनुल्लेख और सियम्बर शब्द का एकाधिक बार उल्लेख होने से २३. मुक्कं वासोजुयलं....... | - चउपन्नमहापुरिसचरियं, पृ. २७३ २४. एगं देवदूसमादाय...... पव्वइए । - कल्पसूत्र ११४ २५. पउमचरियं भाग-१ (इण्ट्रोडक्सन पेज १९, फुटनोट ५)
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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