SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७४ अनुसन्धान-५९ उल्लेख जिनरत्नकोश में मिलता है, जिनकी संख्या ३० से अधिक है । इनमें हनुमानचरित, सीताचरित आदि भी सम्मिलित है । विस्तारभय से यहां इन सबकी चर्चा अपेक्षित नहीं है। आधुनिक युग में भी हिन्दी में अनेक जैनाचार्यों ने रामकथा सम्बन्धी ग्रन्थों की रचना की है। इनमें स्थानकवासी जैन संत शुक्लचन्द्रजी म. की 'शुक्लजैनरामायण' तथा आचार्य तुलसी की 'अग्निपरीक्षा' अति प्रसिद्ध है। जैनों में रामकथा की दो प्रमुख धाराएँ - वैसे तो अवान्तर कथानकों की अपेक्षा जैन परम्परा में भी रामकथा के विविध रूप मिलते है । जैन परम्परा में भी लेखकों ने प्रायः अपनी अपनी दृष्टि से रामकथानक को प्रस्तुत किया है। फिर भी जैनों में रामकथा की दो धाराए लगभग प्राय ईसा की ९वीं शताब्दी से देखी जाती है - १. विमलसूरि की रामकथा धारा और २. गुणभद्र की रामकथा धारा । सम्प्रदायों की अपेक्षा-अचेल यापनीय एवं श्वेताम्बर विमलसूरि की रामकथा की धारा का अनुसरण करते रहे, जबकि दिगम्बर धारा में भी मात्र कुछ आचार्यों ने ही गुणभद्र की धारा का अनुसरण किया । श्वेताम्बर परम्परा में संघदासगणि एवं यापनीयो में रविशेष, स्वयम्भू एवं हरिषेण भी मुख्यतः विमलसूरि के 'पउमचरिय' का ही अनुसरण करते हैं, फिर भी संघदासगणि के कथानकों में कहीं कहीं विमलसूरि से मतभेद भी देखा जाता है । रामकथा सम्बन्धी प्राकृत ग्रन्थों में शीलाङ्क चउपन्नमहापुरिसचरियं में, हरिभद्र धूर्ताव्याख्यान में और भद्रेश्वर कहावली में, संस्कृत भाषा में रविषेण पद्मपुराण में, दिगम्बर अमितगति धर्मपरीक्षा में, हेमचन्द्र योगशास्त्र की स्वोपज्ञवृत्ति में तथा त्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र में, धनेश्वर शत्रुञ्जयमाहात्म्य में, देवविजयगणि 'रामचरित' (अप्रकाशित) और मेघविजयगणि लघुत्रिषष्टिशलाकापुरूषचरित्र (अप्रकाशित) में प्रायः विमलसूरि का अनुसरण करते है। अपभ्रंश में स्वयम्भू 'पउमचरिउ' में भी विमलसूरि का ही अनुसरण करते है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि रविषेण का 'पद्मपुराण' (संस्कृत) और स्वयम्भू का पउमचरिउ (अपभ्रंश) चाहे भाषा की अपेक्षा भिन्नता रखते हो, किन्तु ये दोनों ही विमलसूरि के पउमचरियं का संस्कृत या अपभ्रंश रूपान्तरण ही लगते है ।
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy