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अनुसन्धान-५९
परघल (७) खूब, घj ईत (१५) इति, उपद्रव तुरका (९८) तुर्क चिगड़चगड़ (२०) चोर-डाकू सवरी (२४) ? झतराली (२६) ? सीयइ (३०) ठंडीमां माहू (३०) ?
'संवेगकुलक' प्रेरणादायी कृति छे. गा. ७मां 'विसयेसु' छे त्यां 'विसहेसु' शब्द होवानी पूरी शक्यता छे.
नवतत्त्व सम्बन्धी संस्कृत-प्राकृत रचनाओ तथा बालावबोध, टबार्थ जेवी रचनाओनी एक समग्रसूचि मुनिद्वय द्वारा आपणने प्राप्त थाय छे, जे रसप्रद छे. कृतिओनो क्रम रचनावर्ष प्रमाणे राख्यो होत तो सूचि वधारे सूचक बनत. टबार्थ साहित्यनी सूचिमां पार्श्वचन्द्रसूरिनो गच्छ सौधर्मगच्छ दर्शाव्यो छे ते हकीकत दोष छे. एमनो गच्छ नागपुरीय बृहत् तपागच्छ सुप्रसिद्ध छे. सौधर्मगच्छ एमना शिष्य ब्रह्मषिए शरु को हतो.
__जैन कथासाहित्यना प्रकार, भाषा, उद्देश्य वगेरे बिन्दुओनी क्रमबद्ध विचारणा करतो श्री सागरमल जैननो अभ्यासलेख पठनीय छे. मुनिश्री त्रैलोक्यमण्डनविजयजीनो निह्नवरोहगुप्त, श्रीगुप्ताचार्य तथा त्रैराशिक मतनी ऐतिहासिक दृष्टिए विचारणा करतो अभ्यास लेख, घनिष्ठ अभ्यास, तुलनात्मक विचारणा वगेरे थकी ध्यानार्ह बन्यो छे.
जैन मन्दिर, नानीखाखर-३७०४३५,
कच्छ, गुजरात