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________________ जून - २०१२ कीर्तिराजोपाध्याय कृत श्री ज्ञानपञ्चमी गर्भित नेमिनाथ-स्तवन वंदामि नेमिनाहं, पंचम गइ कुमरि विहिय वीवाहं । भंजिय मयणुच्छाहं, अङ्गीकयसीलसन्नाहं ॥१॥ ॥ भास ॥ अत्थिय काया पंच कहिय जिण पंच पमाया । पंच नाण पंचेव दाण पणवीस कसाया ॥ पंच विषय पंचेव जाइ, इन्द्रिय पंचेव । सुमति पंच आयार पंच तह वय पंचेव ॥२॥ पंच भेद सज्झाय पंच चारित्त परूविय । इग्यारिसि पंचमि पमुक्ख तव जेण पयासिय ॥ पंच रूव मिच्छत्त-तिमिर-निन्नासण-दिणयर । नयण सलूणउ देव नेमि सो थुणियइ सुहयर ॥३॥ ॥ वस्तु ॥ पंच वन्नहि पंच वन्नहि सुरहि कुसुमेहि । मणि माणिक मुत्तियहि, पञ्च पञ्च वत्थूणि उत्तम । भावइ पञ्चहि पुत्थियहि, पञ्च वरिस काऊण पञ्चमि ॥ जे आराहइ पञ्चविह नाण ठाण लोयाण । नेमिजिणेसर भुवणगुरु द्यउ वर केवलनाण ॥४॥ जिण मूल उमूलिय पञ्चबाण, पञ्चम गइ पामिय जेणि ठाण । सावण सिय पञ्चमि जम्म जासू, हूं भावइ वंदु चरण तासु ॥५॥ जिण चवदह पुव्व इग्यार अङ्ग, उपदेसइ दंसिय मुक्खमग्ग । परमिट्ठपञ्च मझ य पहाण, तं नमह नेमि जिण होइ नाण ॥६॥
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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