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________________ १३० अनुसन्धान-५९ नथी जाणता ओम ज सिद्ध थशे. कारण के नियम छे के जेतुं कारण नथी ते कार्य कां तो कायम होय ज कां तो कायम न ज होय. युगपद्वाद तरफथी थती प्रस्तुत दलील शब्दान्तरे श्रीनन्दिसूत्रनी हारिभद्रीय टीकामां पण मळे छे. "अकारणमेव अन्यतरोपयोगकालेऽन्यतरस्याऽऽवरणं, तथा च सति सर्वदैव भावाभावप्रसङ्गस्तथा चोक्तम् - "नित्यं सत्त्वमसत्त्वं वा हेतोरन्यानपेक्षणात् । अपेक्षातो हि भावानां कादाचित्कत्वसम्भवः ॥” इति ।" ___(उद्धृत वि.ण. २२५नी टीका) परिसुद्धं सायारं अवियत्तं दंसणं अणायारं । ण य खीणावरणिज्जे जुज्जइ सुवियत्तमवियत्तं ॥२.११॥ टी. - साकार- विशेषग्राही ज्ञान व्यक्त होय छे अने अनाकारसामान्यग्राही दर्शन तो अव्यक्त होय छे. हवे जेनां आवरण क्षीण थई गया छे ओवा अर्हत्ने व्यक्त शुं ? अने अव्यक्त शुं? (माटे सामान्य-विशेष उभयात्मक ज्ञेयने विषय बनावनारो ओक ज केवलबोध स्वीकारवो जोइओ.) वि. – वि.ण. २१९-२२०मां क्रमवाद सामे रजू थयेल आ प्रकारना तर्कनो जवाब श्रीजिनभद्रगणिजे केवलदर्शननी व्यक्तता सिद्ध करीने आप्यो छे.२७ अदिटुं अण्णायं च केवली एव भासइ सया वि । __एगसमयम्मि हंदी वयणवियप्पो न संभवइ ॥२.१२॥ ___टी. - (युगपद्वादमां बे उपयोग परस्पर स्वतन्त्र होवाथी जे जोडे छे ते जणायुं नथी अने जणायुं छे ते देखायुं नथी. ज्यारे क्रमवादमां जाणवाना समये जोता नथी अने जोवाना समये जाणता नथी. माटे ओ बन्ने मते) केवली भगवन्त ज्यारे बोले छे, त्यारे कां तो जाणेलुं नहीं होय, कां तो जोयेलुं नहीं होय. (अने तेथी बन्ने मते) अकसमयमां (जोयेलुं अने जाणेलं केवली बोले छे अर्बु) विशिष्टवचन अनुपपन्न थशे. वि. - आ गाथाना टीकागत अर्थ परत्वे केटलीक समस्याओ -
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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