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________________ ११६ अनुसन्धान-५९ ग्रन्थनी व्याख्या लखती वखते तेमां तेमना विरुद्ध पोतानो युगपत्पक्ष कोईक रीते स्थाप्यो होय ?" परन्तु पण्डितजीनी आ वात वाजबी जणाती नथी. कारण के श्रीसिद्धसेनाचार्यना अभेदवादथी विरुद्ध युगपद्वादनी स्थापना मल्लवादीजी श्रीसिद्धसेनाचार्यना ज ग्रन्थनी टीकामां न करे ओम समजी, मल्लवादीना त्रीजा कोईक ग्रन्थनी कल्पना करवी ते करतां, मल्लवादीजीओ दिवाकरजीने युगपद्वादी ज समजी तेमना ज युगपद्वादनी प्ररूपणा सन्मतिटीकामां करी हशे ओम मानवू वधारे उचित लागे छे. अने आ मान्यताने समर्थन आपतो अेक पुरावो पण आपणने, श्रीअभयदेवसूरिजी कृत सन्मतिटीकामां सांपडे छे. श्रीअभयदेवसूरिजीओ सन्मति० - २.१४नी टीकामां, ओ गाथानो युगपद्वादी केवो अर्थ करता हता ते जणाव्युं छे - "युगपदुपयोगद्वयवादी 'अनन्तं दर्शनं प्रज्ञप्त'मित्यस्यां प्रतिज्ञायां 'साकारग्गहणाहि य णियमऽपरित्तं' इत्यकारप्रश्लेषात् ... हेतुमभिधत्ते ।" आ उल्लेख परथी स्पष्ट छे के सन्मतितर्कनी युगपद्वादी द्वारा करवामां आवेली कोईक टीका श्रीअभयदेवसूरिजी सामे मोजूद हती. आ टीका बहु ज सम्भव छे के मल्लवादीजीनी ज हती. कारण के ओक तो श्रीअभयदेवसूरिजी गाथा २.१०नी टीकामां मल्लवादीजीने ज युगपद्वादी तरीके ओळखावे छे, अने बीजुं ओ के श्रीअभयदेवसूरिजीथी पूर्वे मल्लवादी सिवाय कोईओ सन्मतितर्क पर टीका लख्यानो उल्लेख जाणवामां नथी. सम्भवित छे के प्रस्तुत युगपद्वादपरक व्याख्याने लीधे ज मल्लवादीजीने श्रीअभयदेवसूरिजीओ युगपद्वादी गणी लीधा होय. हवे, जो मल्लवादीजीओ सन्मतितर्कनी प्रस्तुत विषयने सम्बन्धित गाथाओनी व्याख्या युगपद्वादपरक करी होय, तो स्वाभाविक रीते समजी शकाय के तेओ दिवाकरजीने युगपद्वादी ज समजता हशे. दिवाकरजीना मन्तव्य विशेनां उपलब्ध साक्ष्योमां मल्लवादीजीनो अभिप्राय ज सौथी प्राचीन छे, अने ओ अभिप्राय श्रीसिद्धसेनाचार्य युगपद्वादी हता ओ वातनी तरफदारी करे छे. ओ दृष्टिले 'सिद्धसेन दिवाकरजी युगपद्वादना स्थापक हता' ओ मत, दिवाकरजी अभेदवादी होवाना मत सामे वधु सबल बने छे. अत्रे ज्ञातव्य छे के श्रीअभयदेवसूरिजीथी पूर्वे कोई दिवाकरजीने अभेदवादी गण्या होवानो
SR No.520560
Book TitleAnusandhan 2012 07 SrNo 59
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages161
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size6 MB
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