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________________ फेब्रुआरी - २०१२ ८१ मारा जेवा बाळ जीवो माटे आ कृतिनां सूत्रो, तात्पर्य तो ठीक, सामान्य शब्दार्थ पण समजवो अघरो छे. छतां पण समग्र कृति लखतां-अवलोकतां पूर्वना कोईक महर्षिनी महान रचना होय अवी अनुभूति सतत थई छे. ___ आ ग्रन्थनी स्वोपज्ञ टीका हती ओवी नोंध मळे छे पण अत्यारे तो ओ उपलब्ध नथी. मूळ कृति पण सचवाई ते पूज्य गुरुभगवन्त आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी म.नी काळजीने आभारी छे. तेओओ आ कृतिनो लांबा फूलस्केप बारेक कागळ पर पेन्सिलथी लखायेलो काचो खरडो वर्षोथी जतनपूर्वक साचवी राख्यो हतो. आ खरडामां जूनी लिपिमां सूत्रो लखवामां आव्या छे अने त्यारबाद अनेक सुधारा-वधारा, सूत्रोनी वधघट, विषयविभाग व. करवामां आव्या छे. आ कृति पोताना विषयनी ओक समग्र कृति छे. बहु ओछी कृतिओ आवं पूर्णत्व धरावती होई शके. आनां सूत्रोनी विशिष्ट रचनाशैली, अन्य प्रमाणशास्त्रो साथे अनी तुलना, कर्तानो मौलिक उन्मेष, अनेकान्ततत्त्व व. विशे विस्तृत विवेचन लखवानो मारो ख्याल हतो. परन्तु तेवा विशिष्ट अभ्यासना अभावे ओ साहसथी विरमवार्नु उचित लाग्युं छे. अत्यारे तो मूळ कृतिना काचा खरडाने सुग्रथित स्वरूपमा अभ्यासीओ सामे मूकीने सन्तोष मानी लीधो छे. अर्थना अनवबोधने लीधे थयेली भूलो तरफ ध्यान दोरवा विद्वानोने विनन्ति. परमगुरुनी ओक अप्रगट कृति सौप्रथम वखत प्रकाशित थई रही छे तेने अनेरो आनन्द छे.
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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