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________________ फेब्रुआरी - २०१२ १५९ जरूरी बनी ? ओ ज कारण न होय के 'ओक जूठ सो जूठने ताणे' ओ कहेवत मुजब रोहगुप्तने नोजीवनी सिद्धि माटे आवी बधी वस्तुओ पण कल्पवानी जरूर पडी होय अने श्रीगुप्ताचार्यने तेनो पण निषेध करवानी फरज पडी होय ? जो के आ बधां तत्त्वो रोहगुप्तने ओनो पक्ष मजबूत करवामां कई रीते सहायक बन्यां होय ते आपणे नथी समजी शकता. पण जैनमतने सम्मत धर्म, अधर्म व. छ पदार्थोने स्थाने आवा छ पदार्थोनी कल्पना रोहगुप्त द्वारा ज करवामां आवी हती ते आ उपरथी चोक्कस जणाय छे. जुओ - "तेण (-रोहगुत्तेण) छ मूलपयत्था गहिया" (-उत्त.-पाइयटीका). जो के आ पाठ प्रमाणे तो 'गृहीत' नो अर्थ ओवो पण थई शके के आवा छ पदार्थोनी कल्पना अन्य कोई दर्शनमा प्रवर्तती हशे अने तेमांथी रोहगुप्ते लीधी हशे. पण वि.भाष्यमां आवा छ पदार्थो माटे स्पष्ट 'स्वमतिविकल्पित' अर्बु विशेषण आपवामां आव्यु छे के जे सूचवे छे के आ छ पदार्थोनी कल्पना रोहगुप्तनी पोतानी बुद्धिनी ज नीपज हती. जो रोहगुप्ते पोते ज आवा छ भावोनी कल्पना करी होय तो अवश्य तेमने वैशेषिक दर्शनना प्रस्थापक समजवा ज पडे; कारण के ओ दर्शन- समग्र माळय़ आ छ भावोनी कल्पनाना पाया पर ऊभुं छे. पण विचारवा जेवू ओ छे के वैशेषिक दर्शनमां क्यांय जीव, अजीव अने नोजीव - ओम त्रण राशिनी कल्पना आवती नथी के जे कल्पना रोहगुप्तनुं मुख्य अवलम्बन छे. तो त्रैराशिक रोहगुप्त बे राशिने स्वीकारनारा वैशेषिक दर्शनना प्रस्थापक कई रीते होई शके? अर्बु बने के ओमनी शिष्य-सन्ततिओ त्रण राशिनी कल्पना छोडी दीधी होय ? वि.भाष्यगत 'फाईकयमण्णमण्णेहिं' परथी ओ तो स्पष्ट ज छे के अमनी शिष्यसन्ततिओ ओमना स्थापेला वैशेषिक दर्शनने दृढमूल बनाववामां सिंहफाळो आप्यो हतो. बनी शके के दर्शनने दृढमूल बनाववानी प्रक्रिया दरमियान त्रण १. (पृष्ठ १६० साथे सम्बन्धित) संस्कृत साहित्य का बृहद् इतिहास (ले.-पुष्पा गुप्ता, प्र.- ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली-२०११)मां वैशेषिक दर्शनने लगभग २३०० वर्ष जेटलुं प्राचीन देखाडवामां आव्युं छे. भारतीय दर्शन का इतिहास - भाग १ (ले.एस. एन. दासगुप्ता, प्र.- राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर-१९७८) पृ. २८१ थी शरू थती चर्चामां साबित करवामां आव्युं छे के वैशेषिक सूत्रो बौद्धपूर्वकालीन छे, पण वैशेषिक दर्शन- निश्चित माळखं बहु मोडुं घडायुं छे.
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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