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________________ फेब्रुआरी - २०१२ १५७ अम छ पदार्थोनी प्ररूपणा करी होवाथी ते 'षडुलूक' तरीके पण ओळखाय छे. षड्- छ पदार्थोने प्ररूपनारा उलूक- कौशिकगोत्रीय - अवो तेनो अर्थ छे. आ रोहगुप्तथी त्रैराशिकदृष्टि- जीव, अजीव अने नोजीव ओम त्रण राशि स्वीकारनारी परम्परा प्रवर्ती हती, तेथी ते 'त्रैराशिक' तरीके पण ओळखाय छे. परन्तु आ उपरान्त वि.भाष्य, उत्त.-पाइय-टीका व.मां तेमने वैशेषिक दर्शनना प्रस्थापक तरीके पण ओळखवामां आव्या छे, ते वात विचार मांगी ले तेवी छे. सौप्रथम आपणे ते स्थळो जोई लइओ के ज्यां तेमने वैशेषिक दर्शनना प्रस्थापक गणाववामां आव्या छे – १. "तेणाभिनिवेसाओ, समइविगप्पियपयत्थमादाय । वइसेसियं पणीयं, फाईकयमण्णमण्णेहिं ॥" -वि.भाष्य-२५०७ २. "तेण (-रोहगुत्तेण) वेसेसियसुत्ता कया ।" - उत्त.नियुक्ति-१७४-पाइयटीका ३. “ततः षष्ठनिह्नवास्त्रैराशिकाः, क्रमेण वैशेषिकदर्शनं च प्रकटितम् ।" - कल्पकिरणावली आ तमाम स्थळे रोहगुप्तने वैशेषिक दर्शनना प्रस्थापक गणवामां आव्या छे. तेनी पाछळy कारण, वैशेषिक दर्शनना पायानुं तत्त्व - छ पदार्थोनी सौ प्रथम प्ररूपणा तेमणे करी से मान्यता छे. अने आ मान्यता पाछळनु कारण नीचेनो प्रसंग छे. राजसभामां श्रीगुप्ताचार्य अने रोहगुप्त वच्चेनो वाद छ महिना सुधी चालवा छतां ज्यारे निवेडो ना आव्यो, त्यारे श्रीगुप्ताचार्ये जीव-अजीव ओम बे ज राशि होवानी वात साची छे तेनी बधाने प्रतीति कराववा माटे ज्यां आगळ देव पोतानी दिव्यशक्तिथी मांगेली वस्तु सकल विश्वमां गमे त्यां होय तो त्यांथी लावी आपे छे तेवी दुकाने (कुत्रिकापणमां) राजा-प्रजा बधांने आववा जणाव्युं. ते दुकाने गुरुओ १४४ वस्तुनी मांगणी करी. मतलब के आ १४४ वस्तु दुनियामां होय छे के नहीं ओम पूछ्युं. कारण के जो वस्तु दुनियामां क्यांय पण होय तो देव लावी ज आपवानो हतो.
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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