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फेब्रुआरी - २०१२
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जीव फीटी अजीव न थाय, अजीव फरीने जीव न कहाय, भव्य टलीने अभव्य न होय, अभव्यपणो टली भव्य न जोय ॥११९॥ परणामिकभाव ए जाणवो, जांणीनइ समकित आंणवो, समकित पांमें सुख अनंत, इणिपरि भाख्यो श्रीभगवंत ॥१२०॥ अल्पबहुत्व ते सिद्धज तणा, किहां थोडा ने किहां घणा, नपुंसकसिद्ध ते थोडा जांण, असंख्यातगुणा स्त्रीसिद्ध वखांण ॥१२१॥ स्त्रीसिद्धथी पुरूष ज जोय, असंख्यात गुणा सिद्ध अधिका होय, एक समें सिद्ध केतला थाय, ति पण वात कही जिनराय ॥१२२॥ दस नपुंसकसिद्ध ज जांण, वीस ते स्त्रीसिद्ध वखांण, एकसोआठ पूरषज कह्या, जिनवचनें आगमथी लह्या ॥१२३।। बिसे बहोत्तर बोलज सार, आगमथी कीधो विस्तार, नवतत्त्वनी चोपई एह, भणे गुणें सूख पांमे तेह ॥१२४।। श्रीलंकागच्छसिणगार, श्रीपूज्य श्रीतेजसिंह गणधार, तास्स पाटिं विराजें सार, कान्ह आचार्य ज्युं दिनकार ॥१२५॥ तास शासनमाहें सोभता, दाम मुंनीवर पंडित हता, तास्स शिष्य ऋषि वरसिंहें कह्या, ए बोल सिद्धांत थकी मई ग्रह्या ॥१२६।। संवत सतरछासठे उल्हास, नगर कालावड रह्या चोमास, गांधी गोकल वीनती करी, दांम मुनी शिष्ये चितमें धरी ॥१२७।।
॥ इति श्रीनवतत्व चोपइ समाप्तः ॥ सं० १७६६ वर्षे श्रावण सुदि ९ दिने लिखितं पूज्य ऋषि श्री ५ दामाजी तस्य शिष्य पूज्य ऋषि श्री ५ वरसंधजी तत् शिष्य ऋषि वालजी लपी
कृतः ॥ कालावडनगरे शुभं श्रेयमङ्गलं ॥ ॥ खोटो अधिको उछो लिख्यानो मिछामिदुकडं ॥श्री।।
C/o. प्रसन्नचन्द्रस्मृति भवन,
तलाटी रोड,
पालीताणा