SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेब्रुआरी - २०१२ ११३ बि भेदे एकंद्री जोय, सूक्षम बादर ए बें होय, सनी असनी पंचंद्री कह्या, गुरूवचन आगमथी लह्या ॥११॥ बेरंद्री तेरंद्री सार, चउरंद्री ए सात प्रकार, साते ए प्रजाप्त कह्या, साते ए अप्रजाप्त लया ॥१२॥ प्रजाप्तौ कहीए तेह, प्रजा पूरी करइ जेह, अप्रजाप्तो पूरी नव करइ, चउथी प्रजा विण कीधां मरइ ॥१३॥ ए जीवना चउद प्रकार, धारइ समदीठी नर-नार, जीव जांण्यां वी(वि)ण समकित नही, एहवी वातज जिनवर कही ॥१४॥ कहइ कहुं प्रजानो ज्ञान, जिण धार्या आपइ वीज्ञांन, संसारी जीवनइ प्रजा कही, सीधना जीवनें प्रजा नही ॥१५॥ आहारप्रजा पहिली जाणि, सरीरप्रजा बीजी वखांण, इंद्रीप्रजा त्रीजी कही, सासोसास ए चोथी लही ॥१६॥ पांच इंद्री ते पांचें पांण, मन-बल वचनबल कायबल जांण, सास-उसास अनें आयुखो, प्रांण दसविधने उलखो ॥१९॥ भाषाप्रजा पांचमी कही, मनप्रजा ते छठी लही, एकंद्रीने प्रजा च्यार, आहार सरीर इंद्री उदार ॥१७|| सासोसास ए च्यारज जांण, विगलंद्रीने पंच प्रमाण, पंचमी भाषा वधी सार, संगनीने मननो वीस्तार ॥१८॥ जीव ते जे प्रांणज धरे, प्रांण विना ते निश्चइ मरें, जे नर जीवना प्रांणज हरइ, तिण हंस्या नरकइं संचरइ ॥१९॥ धर्म अधर्म अने आकास, तीन तीन भेद एहना प्रकास, स्खंध देस अनें परदेश, दशमो काल कह्यो सूवीसेस ॥२१॥ चलणसभाव धर्मास्तिकाय, अधर्मास्ति ते थिर सूखदाय, विकास लखण आकासज कह्यो, गुरूप्रसाद आगमथी लह्यो ॥२२॥ काल ते समयाधिक जांण, हवइ कहुं तेहनो परिमाण, असंख्यात समें आवलिका जोय, कोडि एक सतसठलक्ष होय ॥२३।। सत्योत्तरसहस में बिसें सोल, एहथी आवलका महुर्त बोल, तीस महूर्त दिनरात्रं जाय, तीसे दिवसे मासज थाय ॥२४॥
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy