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________________ १०८ अनुसन्धान-५८ श्री धनेश्वरसूरिजी रचित संवेगकुलकम् आगम प्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी सम्पादित 'कैटलॉग ऑफ संस्कृत प्राकृत मेन्यूस्क्रिप्ट : जैसलमेर कलेक्शन' के पृष्ठ २८८ पर अंकित, क्रमांक १३२४ प्रति में ४२ नं. की कृति पत्र २७० से २७२ तक में दी गई है। संवत् १२४६ की लिखी हुई प्रति है। यह वस्तुतः सूक्ष्मार्थविचारसारप्रकरण से प्रारम्भ होती है और युगादिदेवस्तोत्र पर समाप्त होती है । वस्तुतः यह स्वाध्याय पुस्तिका दृष्टिगत होती है । इसमें खरतरगच्छ के आधाचार्यों की अधिकांशतः कृतियाँ है । यह कृति धनेश्वरसूरि की है । धनेश्वर नाम के कई आचार्य हुए हैं जिनका विवरण 'जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास' से दिया गया है। उसके अनुसार श्री धनेश्वर श्री जिनेश्वरसूरि के शिष्य श्री अभयदेवसूरि के गुरुभ्राता थे । इनका समय ११वीं शताब्दी माना जाता है ।। इसी समय में चन्द्रगच्छीय चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि हुए हैं। जिनका कोई भी साहित्य का उल्लेख प्राप्त नहीं है । नागेन्द्रगच्छ (पौ.) के रामचन्द्रसूरि की परम्परा में अभयदेवसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि हुए हैं । इनकी भी कोई कृति प्राप्त नहीं होती है । १४वीं शताब्दी में नागेन्द्रगच्छीय धनेश्वरसूरि हुए हैं । विक्रम संवत् ५१० (?) में धनेश्वरसूरिजी नाम के आचार्य हुए हैं। इनके भी कोई ग्रन्थ प्राप्त नहीं होते हैं । संवत् ११७१ में धनेश्वरसूरि हुए हैं । जिनकी की सूक्ष्मार्थविचार सारोद्धार टीका है। संवत् १२०१ में विमलवसही आबू के उद्धारक धनेश्वरसूरि हुए हैं। इसी समय में चन्द्रप्रभसूरि के शिष्य धनेश्वरसूरि हुए हैं । राजगच्छीय धनेश्वरसूरि हुए हैं जो कि कर्दम भूपति थे । इन सब धनेश्वरसूरि के समय को देखते हुए इस रचना के कर्ता
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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