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अनुसन्धान-५८
भगवतीसूत्र पर व्याख्यान भी देते थे ।
प्रथम पार्श्वनाथ स्तवन में किशनगढ़ विराजित श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर में संवत् १९०६ का उल्लेख किया गया है और चातुर्मास भी वहीं था। अतः उनके द्वारा विज्ञप्ति पत्र में उल्लेखित चातुर्मास यहा है, इसकी पुष्टि होती है । दूसरे ऋषभदेव स्तवन के अन्त में लिखा है कि- साधु श्री त्यागी महाराज, संवत् १९०२ लिखा है और विज्ञप्ति पत्र भी ग्वालियर भेजा गया है । अतः नामसाम्य से यह अनुमान है कि वही हो । दोनों स्तवन प्रस्तुत हैं
१. कृष्णगढ़ मण्डन पार्श्वनाथ स्तवन रे प्रभु तार चिन्तामणि पासजी भक्तनी वार भवांतर जाल रे । प्रभु दीनदयाल विशाल छो हिवे सेवक सन्मुख भाल रे ॥प्रभु तार. १॥ रे प्रभु दूर थकी हूं आवियो भरपूर मनोरथ मुज्झ रे । प्रभु सूर थका किम तम रहे त्रिहुँ लोक दिवाकर तुज्झ रे ॥प्रभु तार. २॥ रे प्रभु चिन्तामणि स्वामी सिरे गढ़ कृष्ण विराजे आपरे । प्रभु पाप सकल नाशे परा भवि तन मन से कर जाप रे ॥प्रभु तार. ३।। रे प्रभु प्रभुदर्शन जाणूं नहीं, हूँ ताणू निसदिन रूढ़ रे । गूढ़ अति गुण ताहरा किम जाण सके जिके मूढ़ रे ॥प्रभु तार. ४॥ रे प्रभु हरखे हिवडो माहरो तारक तायरो मुख देख रे । प्रभु मोर सोर जिम मेघ से तिम पंख जरे विन पेख रे ॥प्रभु.तार. ५।। रे प्रभु उगणिसे छ: के समय वद माघ तीज शुभ वार रे । रे प्रभु भगवन्त भेट्या भावसूं हिये हुलसे हरख अपार रे ॥प्रभु तार. ६।। रे प्रभु तेजविजय तपतेज में, पद शान्तिविजय महाराज रे । प्रभु रत्नविजय एम विनवे बडवेगो दीजो सिवराज रे ॥प्रभु तार. ७॥
२. रतलाम मण्डन ऋषभदेव स्तवन ऋषभ जिनेन्द्र दयाल मया कर्मो(करजो) भ(घ)णी हो लाल,
मया कर्मो(करजो) भ(घ)णी । भ्यासम(?) छै सवि तुज्झ अरज सुण मुझ धणी हो लाल,
अरज सुण मुझ धणी॥