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डिसेम्बर २०११
दूंकनोंध :
( १ )
उत्तराध्ययन-निर्युक्तिनी ओक गाथाना अर्थ विशे
मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
उत्तराध्ययन-निर्युक्तिमां नीचे मुजब अक गाथा छे
"मोत्तूण ओहिमरणं, आवीची आइयं तु तं चेव । सेसा मरणा सव्वे, तब्भवमरणेण णेयव्वा ॥ "
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उ. नि. ५.१६ ॥
आ गाथा माटे उत्तराध्ययननी शिष्यहिता ( पाइय) वृत्तिमां वादिवेताल श्रीशान्तिसूरिजी महाराजे आम नोंध करी छे - " अत्रान्तरे प्रत्यन्तरेषु 'मोत्तूण ओहिमरणं' इत्यादिगाथा दृश्यते, न चाऽस्या भावार्थः सम्यगवबुध्यते, नाऽपि चूर्णिकृताऽसौ व्याख्यातेति उपेक्ष्यते ।" (-अत्रे केटलीक अन्य प्रतोमां ‘मोत्तूण ओहिमरणं' अ गाथा देखाय छे, पण आनो भावार्थ बराबर समजातो नथी, वळी, चूर्णिकारे पण अनी व्याख्या नथी करी, ओटले अमे पण अनी व्याख्या नथी करता.)
आनी सामे जैन विश्वभारती - लाडनूं - थी प्रकाशित निर्युक्ति- -पञ्चकभाग ३मां उत्तराध्ययन-निर्युक्तिना मूळपाठमां आ गाथानो समावेश करवामां आव्यो छे अने त्यां सेना पर टिप्पणी करवामां आवी छे के टीकाकारे आ गाथाने व्याख्यायित न करी होवा छतां हस्तलिखित आदर्शोमां मळती होवाथी अने प्रसंगानुसार उपयुक्त लागवाथी राखवामां आवी छे. त्यां आ गाथानो आवो अर्थ आपवामां आव्यो छे- "अवधिमरण और आवीचिमरण को छोडके शेष पन्द्रह मरण तद्भवमरण कहे जातें हैं ।"
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आ गाथानो आवो अर्थ करवो योग्य नथी लागतो; कारण के(१) आमां 'आइयं तु तं चेव' आटला शब्दोनो अर्थ बाकी रही जाय छे. (२) तद्भवमरणनी व्याख्या बहु स्पष्ट छे के जे जीव जे भवमां वर्ततो