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________________ डिसेम्बर २०११ वस्तु - २ ॥ देवलोकहिं देवलोकहिं आयु परिमाण । सुर असुर नारकतणां उरग ज्योति व्यंतर विद्याधर । भवन धांम वैमांणना नयर देह धनु पल्यसागर । आपिं एहजि बांधणी श्रीमुखि श्रीजगनाथ । आणंदवर्द्धन इम कहइ तु सुणिवू जोडीय हाथ ॥९९।। हिव दूहा ॥ पुण्य तत्त्व त्रीजुं सुणउ । भेदे बइतालीस । पहिलु सातावेदनी । सुख पामइ निसि दीसि ॥१००॥ बीजुं गोत्र उंचुं लहइ । निश्च लहइ नर मांन । नरभव मुंकी नर हवइ । त्रीजुं साभिन्यांन ॥१॥ चउधुं करम सु बांधीउं । अवर गती जिणि होइ । मुन(मनु)क्षानुपूरवी ते कही । अंतिकालि नर सोइ ॥२॥ पुण्यप्रकृति गुण पांचमु । नर वैमानिक किद्ध । छटुं कर्म गति अवरनुं । बद्धअंति सुरलद्ध ॥३॥ देवानुपूरवी ए कही । सत्तम पणिदीय सार । पुण्य पसाइं आठमुं । पंच देह अनिवार ॥४॥ नवमुं सुरनारकतणुं । वैक्रय सयर कहाइ । चऊदपूरवधर दाहमुं । सयर आहारक जाइ ॥५॥ अदभुत रूप समय भणुं । एक हाथ परिमाण । सीमंधरस्वामी कह्नइ । पूछी आवइ जाण ॥६॥ तेजस नइ कारमण बिहू । दृष्टिगोचरि नवि थाय । अनादिकाल प्राणी कह्नइ । मुगति लहइ तव जाय ॥७॥ तेजस सयर तणइ बलिं । उदक आहारइ भात । पुण्यप्रकृति अग्यारमी । भेदइ सातइं धातु ॥८॥ चउपई ॥ कार्मण सयर आठइ जे कर्म । जिणि आधारि रहियां ए मर्म । एतिं भेद हुआ छई बार । उदारिक वैक्रय आहार ॥९॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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