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________________ ६६ अनुसन्धान-५७ गाथा चतुरपद चौपईच्छंदांशितुस्संपूर्णं ॥ श्री श्री सौराष्ट्रदेशेषु श्री लवणसमुद्रौ क्ष्यीर एव श्री बंदिर सौदांमाय श्री पौरबंदिरे नगरे । सिरी विक्रमादीत्त संव १७०० । वर्ष ६६ फागुण वदि छट्ठि गुरुवारे लिखितं ऋषि श्री ओधवजी तस्य शिष्य ऋषि हीरजी पठनार्थ ऋषि श्री प्रेमजी सुभं भवतु कल्याणमस्तु लिखक पाठक जयो । ऋ० प्रेमजी ओधवांणीइं पूस्तक भण्डारें कर्यो - क । इति श्री नवतत्त्व चउपई संपूर्ण । संवत् १८१६ वर्षे श्रावणिमासे वदिपक्षे पडिवा १ तिथो गुरुवारे लपिकृतं श्रेयतरात् श्री राधणपुर मध्ये । श्रीपार्श्व देवजी परसादात् श्रीरस्तु । कल्याण० ___ जीर्णगढ संवत १८३० फागुण सुदि ११ उतरीया गीरनार ॐ श्री पूज. - ख । अघरा शब्दोनां अर्थ पान नं. गाथानं. ४ १३ चरी जाड खंचि आनमी आठिल ग्याभणो चरित जाडु/जड, स्थूल (?) खेंचीने नम्र थईने बेडी गाभणो-गर्भयुक्त १३ १७ C/o. देवीकमल जैन स्वाद्यायमन्दिर विकासगृह रोड, ओपेरा, अमदावाद-७
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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