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________________ अनुसन्धान-५७ यथाख्यात चारित्र ते पांचमु अछे सर्व कषाय क्षय कीधा पछइं अथवा उपसमाव्यां हुई आवतां ए पंच चारित्र श्रीजिन भाखता ॥३४॥ भेद सत्तावन जे नर लहें संवर द्वारमा ते नर रहिं भानुचंदवाचक जयवंत सीस देवचंद कहइं ते संत ॥३५॥ निर्जरा तत्त्व सत्तम गुणखाणि बारह भेदें तप वखाणि कर्मक्षयनो कारणहार षड बाह्य षट अभितर धारि ॥१॥ प्रथम बाह्य ते कहुं हित धरी सुंणयो भवियां मन थिर करी इग बि ति दिन यावत षट मास अनसन करें जावजीव उल्लास ॥२॥ बीजो उणोदरी जांणी करो कवल बिडं त्रिहुं ते परिहरो वृत्तिसंक्षेप त्रीजो तप वली इत्यादि अभिग्रह मुंनि ल्ये रुली ॥३॥ सचित द्रव्यादि श्रावकने कहुं चोथा तपनो भेद हवइं लहुं रस परित्याग करें ते भलो कायकिलेस लोच पंचम गुणनिलो ॥४॥ इंद्रीय कषायनइं मन वच काय संवरतां प्राणी सुख थाय हवइं अभितर षट भेद प्रमाण प्रायछित्त आलोइं गुरु आगलि जाण ॥५॥ लाजरहित गुरु आगलि आवी गुरुदत्त तप करें मनि भावि बीजो विनय करें मन-वच-काय आसन प्रदानादिक उभो थाय ॥६॥ आचार्य उपाध्याय तपीया ग्लान बाल-वृद्ध-शिक्षादिक हित मान अन्न पान उसधादिक आणि आपें विश्रामण करें त्रीजें जाण ॥७॥ वाचना पुच्छना परिवर्तना अनुप्रेक्षा धर्मकथा चोथई एक मना आर्त रौद्रध्यान परिहरें धर्म शुकल पांचमि आदरई ॥८॥ छठइ काउसगा करई मनि भावि क्रोधादि विषयादि समावि बार भेद जे ए तप करें करम खपावीं शिवगति वरिं ॥९॥ भानुचंद वाचक गुरु सीस देवचंद नमइं निशिदीस अट्ठम तत्त्वतणो सुविचार चिहुं भेदिई सुणयो भवि सार ॥१॥ प्रकृतिबंध अनइं स्थिति-रसबंध चोथो प्रदेशबंध दलसंघ जिम दुध अनइं पाणि एकठां माटी अनइं धातु सामटां ॥२॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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