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डिसेम्बर २०११
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१०. हित, मित अने मधुर भाषण.
कर्मक्षयजन्य ११ अतिशय- ११. चारे दिशामां १०० योजन सुधी सुभिक्ष १२ आकाशगमन १३. हिंसानो अभाव १४. भोजननो अभाव १५. उपसर्गनो अभाव १६. बधानी सामे सन्मुखता १७. पडछायो न पडवो १८. निर्निमेष दृष्टि १९. विद्यासिद्धता २०. नख अने रोम न वधवा २१.१८ महाभाषा अने ७०० क्षुद्रभाषा युक्त दिव्यध्वनि.
देवकृत १३ अतिशय- २२. वनो फल फूलथी लची पडे २३. कांटा, रेती व. दूर करनारो सुखकारी पवन वाय छे. २४ वैरभावनो नाश थाय छे. २५. जमीन स्वच्छ अने रत्नमय बनी जाय छे. २६. मेघकुमारो सुगन्धि जलनो छंटकाव करे छे. २७. वैक्रिय सस्य देवो बनावे छे. २८. बधा ज जीवोने
आनन्द थाय छे. २९. वायुकुमारो शीतल पवन चलावे छे. ३०. कूवा-तळाव निर्मल जलथी भराई जाय छे. ३१. आकाश निर्मळ थइ जाय छे. ३२. रोगो नाश पामे छे. ३३. यक्षेन्द्रोना मस्तक पर रहेला अने किरणोथी उज्ज्वल चार धर्मचक्रने जोइने लोकोने आश्चर्य थाय छे. ३४. भगवाननी चारे तरफ ५६ सुवर्णकमल, १ पादपीठ तेमज विविध प्रकारनां पूजन द्रव्यो होय छे.
(जैनेन्द्रसिद्धान्तकोश-१, पृ. १३७)
(३)
आदिनाथस्तव (ते धन्ना...) विशे
अनुसन्धान-२४, पृ. १-३मां 'ते धन्ना जेहिं दिट्ठो सि', आवर्तन धरावतुं आदिनाथ प्रभुनु अत्यन्त भाववाही स्तोत्र छपायुं छे. आ स्तोत्रने ओक हस्तप्रत साथे मेळवी जोतां केटलाक पाठान्तरो मळ्या ते अत्रे नोंधवामां आवे छे.
___ * मुद्रित-वाचना अने हस्तप्रत-वाचनाना गाथाक्रममा ७मी गाथाथी नीचे मुजब भिन्नता छे.