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________________ अनुसन्धान-५७ श्रीआदिनाथनमस्कार (२) भत्तिइं पणमिसु आदिदेव सेत्तुजसिरि मंडण भवीयण मन आणंदकरण कम्मट्टविहंडण । सुर नर किंनर नमइ तुब्भ मणभत्तिइं पाया पावपंकफेडणसमत्थ तूं तिहुयणि राया ।। भवभंजण भागु भमीअ तूं पय सरणह राखि कर जोडीनइ वीनवू मुगतिमारगडु दाखि ॥१॥ वस्यु काल अनादि नाथ निगोद मझारि सतर वार एक सासमाहि तहि मरण पयारिइं । नीलि फूलि अनंतकाय कंदिइं हूं भमीउ वरस कोडिलख ते मझारि मई काल नीगमीउ ।। पुढवी पाणी अग्नि पुण वाय वणस्सइ जाइ । बि ति चउरिंदी भवि भमीय लाधु मानवकाय ॥२॥ विनडई च्यारि कषाय क्रोध माया मद मच्छर यौवन भरि शृंगाररंगि मइं गम्या संवच्छर । लोभ लगइ कूडी बुद्धि मई कीधी सामी वंच द्रोह छेल छदम भावि नरयागइ पामी ॥ छेअण भेअण भूख उस(?उर?) सही दुःख अनंत अजखित्ति शुभकरमवसि श्रावयकुलि संपत्त ॥३॥ राग भावि निरखंत रूप ए नयण निरंतर परदूषण ए श्रवण सुणइं अट्टडाइ मणंतर । जीभ न पामइं त्रिपति किम्हइ आहार करती वारिउं न करई क्षणह एक परदोष वंध(वदं)ती ॥ नासिका परिमलगुणि लबध विषयव्यापित देह । तुझ पय तूठई देव हवं करिसु करमनु छेह ॥४॥
SR No.520558
Book TitleAnusandhan 2011 12 SrNo 57
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages135
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size1 MB
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