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________________ ऑगस्ट २०११ ७९ दहाडो दान दीधां ज करे छे ! (१/१३-१७). केवी सरस कल्पना ! सं. १९१५मां रचायेल आ रचनानी सं. १९१६मां लखायेली प्रतिनी जेरोक्सना आधारे आ सम्पादन थयुं छे, एक स्थाने अर्धी कडी तूटी छे, बाकी आखी कृति अखण्ड छे. श्रेयांसनाथ, आ देरासर आजे पण टंकशाळमां विद्यमान छे अने शेठ उमाभाईना वंशजो द्वारा ज तेनुं संचालन थाय छे. श्रीटंकशालमध्ये श्रीश्रेयांसजिनचैत्यसम्बन्धः ॥ श्रीश्रेयांसनाथाय नमः ॥ श्रीअर्हादिक पञ्च पद, बंदू बे कर जोड । नमतां निजगुरुचरणकज, पूगे वंछित कोड ॥१॥ शारदमात मया करी, शुद्ध अक्षर द्यो सार । संघतणां गुण गायवा, मुज मन थयुं ऊदार ॥२॥ सकलदेशमाहे शिरे, गुज्जर धर गुणगेह ।। सकल नयरी शिरशेहरो, राजनयर पुर एह ॥३॥ च्यार वरण करी शोभतो, नयरी मांही निवास । सहु धरमी धनवंत छे, विलसे लिलविलास ॥४॥ तस पूर श्रीजिनचैत्य वर, ईक शत पञ्च उदार । अमर-भुवनसम झलहले, वंदू वारंवार ॥५॥ गीतारथ गुणवंत तिहां, महामुनीश्वर जान । पीत-श्वेत अंबरधरा, निवसे विहरत आंन ॥६॥ आर्या श्रावक श्राविका, चउविह संघ महंत । तास निवास थकी सदा, पुरनी शोभा अत्यंत ॥७॥ ढाल १ ली ॥ विमलाचल विमला प्राणी - ए देशी ॥ छे नयरी घाट सुघाट, भलां भुवन शोभे वली हाट । ते विच विचमां वरवाट, जे जोया- बहु ठाट ॥१॥ रसीला, राजनयर पुर सोहे, जस देखत हि मन मोहे ।।२०। आंकणी ॥
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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