SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऑगस्ट २०११ उपा. श्रीगुणविनयजी गणि कृत बे अप्रगट स्तुतिटीका ६५ -सं. मुनिसुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ भक्तिमार्गने पुष्ट करवा माटे पूर्वाचार्योए विविध प्रकारनां अनुष्ठानो आपणने बताड्यां छे. तेना मुख्य भेद द्रव्यपूजा अने भावपूजा. अहीं ए बे पूजा प्रकारमाथी प्रभुसन्मुख देवनन्दनस्वरूप भावपूजामां बोलाती ४ स्तुति (थोई) ना जोटारूप २ अप्रगट स्तुतिनी टीका जोईशुं । स्तुतिनुं स्वरूप : अहिगयजिण पढमथुई, बीया सव्वाण तइअ नाणस्स । वेयावच्चगराणं, उवोअगत्थं चउत्थ थुई ॥१॥ चैत्यवन्दन भाष्यनी उपरोक्त गाथामां पूर्वाचार्य महर्षि स्तुतिरचनानुं बंधारण समजावे छे. सामान्यथी प्रथम स्तुति कर्ताना इष्टदेवनी, बीजी सर्व सामान्ये जिननी, त्रीजी श्रुतज्ञाननी अने चोथी वैयावच्च करनार देवी - देवतानी थाय छे. कृति परिचय : प्रस्तुत कृतिद्वयमां कविए पूर्वाचार्यमहर्षिनी उपरोक्त वात ध्यानमां राखी कृतिनी रचना करी छे. प्रथम कृतिमां इष्टदेवनी स्तुति करता कविए विविध तीर्थोना अधिपति जिनेश्वर परमात्मानी स्तुति करी छे. टीकाकार श्रीए अहिं स्तम्भनपार्श्वनाथ प्रभुनी स्तुतिटीका करता 'खरतरगगनाङ्गणमणिकरणि (किरण?) श्रीमदभयदेवसूरिप्रकटीकृतं' ए पद द्वारा नवाङ्गीवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरिजीने पोताना गच्छना जणाववानो प्रयत्न कर्यो छे. जोके पुण्यविजयजी म. जेवा श्रेष्ठ विद्वानोना मते तो नवाङ्गीवृत्तिकार श्रीअभयदेवसूरि म.सा. चन्द्रगच्छना ज छे. आ बाबतने पुष्ट करतो एक धातु प्रतिमानो अप्रगट लेख अहीं रजू कर्यो छे. जेमां पण अभयदेवसूरिजी माटे 'चन्द्रगच्छे नवाङ्गवृत्तिकार' ए विशेषण वापर्युं छे. संवत् १२९१ वर्षे आसाढ वदि ८ शुक्रे श्री श्रीमालज्ञातीय श्रे० आसु
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy