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________________ १७२ अनुसन्धान-५६ अमां अपवादभूत नथी. ओटले मनःपर्यवज्ञानना उपयोग समये सौप्रथम मनःस्कन्धो ज सामान्यपणे देखाय छे (-अवधिदर्शन) अने त्यारबाद चोक्कस मनःस्कन्धोनुं विशेषथी ज्ञान थाय छे (-मनःपर्यवज्ञान). आम मनःस्कन्धविषयक ज्ञान अने दर्शन बन्ने प्रवर्ते छे अने ते ज वात 'खंधे जाणइ पासइ' कहीने सूचवाइ होय एवं लागे छे. हवे अहीं अेक महत्त्वनी समस्या सर्जाइ शके तेम छे के जो मन:पर्यवज्ञान पूर्वे अवधिदर्शन अनिवार्य होय तो भगवतीजी-आशीविषोद्देशकमां मनःपर्यवज्ञानीने अवधिदर्शन न पण होय ओम शा माटे कयुं छे ? आनुं समाधान ओम जणाय छे के प्रस्तुत कथन अवा मनःपर्यवज्ञानीने अनुलक्षीने छे के जेमने मति-श्रुत पछी अवधिज्ञानने बदले सीधुं ज मनःपर्यव प्राप्त थयुं होय. आवा महात्माने अवधिज्ञानावरणनो क्षयोपशम न होवाथी अवधिदर्शन पण नथी होतुं. पण अनो अर्थ ओ नथी के तेओने मनःस्कन्धो सामान्यरूपे न देखाय. मनःपर्यवज्ञानथी मनःस्कन्धोने विशेषरूपे जाणतां पहेलां तेमनुं सामान्यदर्शन अनिवार्य छ, अने आ सामान्यदर्शन अवधिदर्शनना अभावमां तेवी विशिष्ट कोटिना अचक्षुर्दर्शनथी सम्पन्न थाय छे तेम मानवू पडे. ओक वात तो नक्की छे के मनःपर्यवज्ञाननी प्राप्ति माटे विशिष्ट लब्धिओथी सम्पन्न होवू अनिवार्य छे अने आवी विशिष्ट लब्धिओ धरावता महात्मानां मति-श्रुत ज्ञान तेम ज चक्षु-अचक्षु दर्शन पण विशिष्ट कोटिनां ज होय छे. तेथी ते महात्मा तेवा विशिष्ट कोटिना अचक्षुर्दर्शनना बळे मनःस्कन्धोने पण जोइ ज शके. जो के उपलब्ध कथासाहित्यमा अवो अक पण दाखलो नथी मळतो के जेमां अवधिज्ञान वगर मनःपर्यव प्राप्त थयुं होय. तेथी ओम जणाय छे के आवी परिस्थिति भाग्ये ज सर्जाती हशे अने तेथी व्यापकताने अनुलक्षीने मन:पर्यवज्ञानीने अवधिदर्शनोपयोग अनिवार्य गणवामां आवतो हशे. निष्कर्ष ओ ज छे के मनःपर्यवज्ञानीने पण मनःस्कन्धोनु सामान्यदर्शन अनिवार्य छे. पछी ओ दर्शन अवधिदर्शनना बळे थाय के श्रुतकेवली जेम विशिष्ट श्रुतज्ञानना बळे सर्व वस्तुने जाणी शके छे तेम विशिष्ट अचक्षुर्दर्शनना बळे थाय. दर्शन अंगेनी आ समग्र चर्चा शास्त्रोना सहारे ज थइ होवा छतां महदंशे
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
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