SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ऑगस्ट २०११ १४५ लेवानो छे के जे सामान्य अंश द्वारा तमाम पदार्थोने अक दोरे परोवी शकाय छे अने जे 'कंइक छे' ओवी प्रतीतिनो विषय छे. दरेक सत् पदार्थमां सघळां ये विशेषणोथी विमुक्त ओक उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक सत्त्व वर्ततुं होय छे के जे दार्शनिक परिभाषामां 'महासामान्य' तरीके ओळखाय छे; ते ज आ सामान्य अंश छे. अन्य आपेक्षिक सामान्य अंशो ज्ञानदर्शननी विचारणा पूरता विशेष अंशो ज गणाय छे. आत्मा पोतानी ज्ञानशक्ति द्वारा वस्तुना सामान्य अने विशेष -बन्ने अंशोनो बोध करी शके छे. जो आ ज्ञानशक्तिओ सामान्य अंशनो बोध करवामां वपराय, तो तेमनो ते वपराश (-उपयोग) 'दर्शन' कहेवाय छे? अने विशेष अंश माटे थतो ज्ञानशक्तिओनो वपराश 'ज्ञान' कहेवाय छे.२ । शास्त्रोमां दर्शन 'निराकार उपयोग' तरीके पण ओळखाय छे. जो के कोई पण बोध आकार वगरनो अर्थात् सर्वथा निराकार नथी ज होतो; तो पण दर्शन अटले निराकार गणाय छे के तमाम दर्शनो समानाकार ज होय छे.३ वास्तवमां आकार शब्द अहीं वैशिष्ट्य अर्थमां छे. ज्ञानगत आ वैशिष्ट्य तेनी पोतानी चोक्कस अर्थना ग्रहण तरफनी अभिमुखताने लीधे आवे छे; के जेने लीधे अक ज्ञान बीजा ज्ञानथी जुदुं पडीने ओळखाइ शके छे. फक्त अने फक्त महासामान्यना ग्राहक दर्शनोमां आवी कोइ विशिष्टता छ ज नहीं के जेनाथी बे दर्शन परस्पर छूटां पडी शके, माटे दर्शन निराकार छे अने परस्पर विषयवैशिष्ट्य धरावनार ज्ञान साकार छे. दर्शन अटले पण निराकार गणाय छे के ते वस्तुने पकडतुं ज नथी, मात्र महासामान्यने ज देखे छे के जे बधी ज वस्तुमां सरखं १. दृश्यतेऽनेनेति दर्शनं, दृष्टिर्वा दर्शनं, सामान्यविशेषात्मके वस्तुनि सामान्यग्रहणात्मको बोधः । ज्ञायते-परिच्छिद्यते वस्त्वनेनेति ज्ञानं, ज्ञप्तिर्वा ज्ञानं, सामान्यविशेषात्मके वस्तुनि विशेषग्रहणात्मको बोधः -नव्यकर्मग्रन्थ-१-गाथा ३-टीका. २. जो के दर्शनमां पण गौणपणे विशेषोनो अभ्युपगम होय छे, अने ज्ञानमां पण गौण पणे सामान्यनो अभ्युपगम होय ज छे. ३. "अनाकाराणि- सामान्याकारयुक्तत्वे सत्यपि न विद्यते विशिष्टो व्यक्त आकारो येषु तान्यनाकाराणि" - कर्मग्रन्थटीका ४. "आकारः प्रतिनियतो ग्रहणपरिणामः' - भगवतीटीका
SR No.520557
Book TitleAnusandhan 2011 09 SrNo 56
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size115 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy