SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-५५ २. त्रीजा सूत्रमा उद्धृत श्लोको : "शब्दप्राधान्यमाश्रित्य, तत्र शास्त्रं पृथग्विदुः । अर्थे तत्त्वेन युक्ते तु, वदन्त्याख्यानमेतयोः ॥ द्वयोर्गुणत्वे व्यापार-प्राधान्ये काव्यगीर्भवेत् ।" (हृदयदर्पण) आनो अर्थ आवो छ : "तेमां (-शास्त्रादिमां) शब्दना प्राधान्यने आश्रयीने (विद्वानो) शास्त्रने जुएं गणावे छे. (अने) अर्थ ज्यारे तत्त्वथीप्राधान्यथी युक्त थाय त्यारे (तेने) आख्यान कहे छे. (तेमज, शब्द अने अर्थ) आ बन्ने गौण थाय अने व्यापार मुख्य बने त्यारे काव्य सर्जाय छे." __ हवे डो. नान्दीओ करेलो अनुवाद जोइओ : "शब्दना प्राधान्यना आश्रये रहेला शास्त्रने जुदुं कर्तुं छे. पण तत्त्वथी युक्त अर्थ होतां (तेने) आख्यान कहे छे...." वास्तवमां शब्दना प्राधान्यनो आश्रय शास्त्रने बीजां बेथी अलग पाडवा माटे लेवाय छे. नहीं के शास्त्र पोते शब्दना प्राधान्यना आश्रये रहे छे. 'तत्त्व'नो अर्थ पण अहीं तत्त्व नथी लेवानो, पण 'प्राधान्य' लेवानो छे; नहीं तो शास्त्रमा अर्थ अतत्त्वथी युक्त- तत्त्वरहित होय छे ओम मानवानी आपत्ति आवे. अनुवादनी आवी गम्भीर भूलो तो बीजी केटलीय हशे एवं ग्रन्थ- अवलोकन करतां जणाइ आवे छे. क्लिष्टता पण एटली छे के घणां बधां वाक्योने त्रण-चार वखत वांचीओ त्यारे भावार्थ तो ठीक, शब्दार्थ पण मांड खबर पडे. हवे अेक नजर आ अनुवाद साथे आपवामां आवेली डो. नान्दीनी काव्यानुशासन अंगेनी विस्तृत भूमिका पर नांखीशुं. आ भूमिकामां डो. नान्दीओ श्रीहेमचन्द्राचार्यनी प्रतिभानु खण्डन करवानो शक्य वधुमां वधु प्रयत्न कर्यो छे. आचार्ये आ काव्यानुशासनमां शुं करवू जोइतुं हतुं अने शुं नहीं तेनी घणी घणी समालोचना करी छे. आचार्यने घणां घणां सलाह-सूचनो पण आप्यां छे. आ बधांनी तथ्यता चकासवा माटे आपणे ओक ज सूत्रने स्पर्शती वातो जोइशुं : "मुख्याव्यतिरिक्तः प्रतीयमानो व्यङ्ग्यो ध्वनिः ॥ का.शा. १.१९ ॥" आ सूत्र पर भूमिकामां तेओओ करेली टिप्पणी : "अहीं पण आपणने हेमचन्द्रनी शास्त्रीय निर्देशनी ऊणप साले छे. सूत्रमा ज्यारे तेमणे
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy