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________________ मई २०११ सिद्धार्थकृत भोजनविधि सं. साध्वी समयप्रज्ञाश्री अगाउना अंकमां आपी हती लगभग तेवी ज छतां तेनाथी कंइक जुदी रचना अत्रे रजू कराय छे. श्रीवीरप्रभुना नामठवण प्रसंगे श्रीसिद्धार्थमहाराजाओ करावेला भोजनसत्कार- वर्णन करती 'सिद्धार्थकृत भोजनविधि' नामक अढारमा सैकामां रचायेल आ कृति भोजनना रसनी जेम काव्यरसथी आस्वाद्य छे. अहीं भोजनमंडप, पीरसनारी स्त्रीओ, पीरसवानो क्रम, भोजन बाद वस्त्रादिनी पहेरामणी वि. वर्णनमां लगभग बंने कृतिमां घणी बधी समानता छे. जोके, भोजनमां पीरसायेल वानगीओनुं वैविध्य भोजन करावनारना राजाशाही ठाठने छतो करे छे. जेमके - साकरमांथी बनावेला मात्र पकवानो ज २८ प्रकारनो छे. ज्यारे मात्र 'शालि'मां ज २० प्रकारनी विविधता छे. शाक-राईता ने भाजी मळीने वळी २३ जातनुं वैविध्य धरावे छे. ११ जातना लाडू अने ४ प्रकारना पाक तेना वैविध्य माटे दाद मांगी ले तेवा छे. भोजनना वैविध्यनी साथोसाथ कविओ कृतिनुं वैशिष्ट्य पण जाळववानो प्रयत्न कर्यो छे. शब्दोना प्रासानुप्रास उपरांत वच्चे-वच्चे ४ श्लोको पण बहु मझाना छे. लाडूनी यादीमां मूकेला 'सिंहकेसरिया'नी पाकविधि बतावतो श्लोक सघळा लाडूमां सिंहकेसरियानी अद्वितीयतानी साक्षी पूरे छे. ज्यारे लापसी अने वडानी विधि वर्णवता श्लोक पण सुंदर छे. दाळनी बाबते बंने कृतिओमां जोतां लागे के, तुवेरनी दाळ ओ गुजरातनी-गुजरातीओनी खास वानगी पहेलेथी ज छे. खाजानी मोटाई माटे एक मझानी कल्पना पंक्ति मूकी छे. 'जिस्यां हुइ आवास तणां छाझां'. सात पडवाळा खाजा पर खांडनुं पड एवी होशियारीथी चढावायुं छे जाणे के घर परनां छजां ! छेल्ले, पीवा माटेना जे पाणी पीरसाया छे तेनी स्वच्छता माटे 'स्वच्छं सज्जनचित्तवत्' अने मधुरता माटे 'बालालिंगनवत्' विशेषणो वापरीने तो कविओ कमाल करी दीधी छे. आ श्लोक सुभाषितग्रन्थोमां प्रसिद्ध छे. ___ भोजननी वानगीओनी विविधता वर्णवीने मोजमां आवी गयेला कवि बोली ऊठ्या छे के 'घणू सूं? स्वर्गना देवता पिण खावाने टलवले' । एक
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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