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________________ आडपेदाशरूपे, पूर्वसूरिओना कार्यमां के लेखनमां कोईकवार कशीक क्षति रही गई जणाय तो तेनुं शुद्धीकरण पण थई शके ए माटे थतुं, उमदा अने आवश्यक ज्ञानकार्य छे. आ रीते काम करनारो संशोधक, कोईनी पण क्षति, पोतानी तीक्ष्ण दृष्टि वडे शोधी काढे तो पण, तेना मनमां पोतानी क्षमता विषे अहंकार अने जेनी क्षति जडी होय तेना माटे तिरस्कार, कदी न सेवे. बल्के तेना हृदयमां कांईक नवं शोध्यानो-जड्यानो आनन्द होय अने पूर्वसूरिओ के अन्य विद्वज्जनो प्रत्ये समादरनो ज भाव होय. दरेक विद्वान पोतानी क्षमता (क्षयोपशम) मुजब काम करता होय छे; तेथी तेनी भूल काढीने तेनो उपहास करवो अने पोतानुं गौरव समजवू, ए तो प्राकृतजनोचित वर्तणूक गणाय. एक कार्य परत्वे एक मुनिए नवें संशोधन रजू कयें. ते विचारयोग्य जरूर हतुं, परन्तु पूर्वापरनो विचार करतां तेमज डॉ. ढांकीसाहेब वगेरे मान्य जनो साथे विमर्श कर्या पछी ते ग्राह्य न जणायुं. तेमने तेमनी वात ग्राह्य न होवा जणावतां तेमणे जे अनादरपूर्ण अने अभिमान तेमज उद्धताईनुं प्रदर्शन करतो प्रत्याघात पाठव्यो, ते जोतां, ऊपर नोंधेली विचारणानुं वाजबीपणुं आपोआप समजाशे. - शी.
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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