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________________ १४४ अनुसन्धान-५५ नवां प्रकाशनो Elements of Jaina Geography लेखक : Frank Van Den Bossche - Ghent Uni. प्रकाशक : Motilal Banarasidass - Delhi, 2007 श्रीहरिभद्रसूरिविरचित जम्बूद्वीपसंग्रहणी (अपरनाम- लघुसंग्रहणी) जैनमान्यता अनुसार भूगोळनुं ज्ञान मेळववा माटे उत्तम साधन गणाय छे. आ प्रकरणमा ३० कारिकामां जम्बूद्वीपने लगती अलग-अलग १० बाबतो निरूपवामां आवी छे. प्रभानन्दसूरिजीओ आ प्रकरण पर सरळ भाषामां विस्तृत टीका रची छे, जेमां मूळ ग्रन्थमां निरूपायेली बाबतोना स्पष्टीकरण साथे बृहत्क्षेत्रसमास वगेरेना आधारे केटलुक उमेरण, विविध मतोनुं निदर्शन वगेरे करवामां आव्यु छे. प्रस्तुत पुस्तकमां मूळ ग्रन्थनी सम्पादित अने अनूदित वाचना तेमज रोमन लिप्यन्तर अने अंग्रेजी अनुवाद साथे टीका आपवामां आव्यां छे. विद्यार्थीओनी सगवड माटे परिशिष्टो अने चित्रो पण मूकवामां आव्यां छे. __ आम तो आ ग्रन्थमां आना लेखकनी महेनत, विद्वत्ता, चोकसाई वगेरे तरत जणाइ आवे छे; छतांय परम्परानी अनभिज्ञता अने योग्य मार्गदर्शनना अभावने लीधे पाश्चात्त्य संशोधकोनां विद्याकार्यो सामे घणी समस्याओ सामान्यतः सर्जाती होय छे अने तेवू आमां पण बनवा पाम्युं छे. जेमके लेखके प्रारम्भमां जम्बूद्वीपसंग्रहणीना रचयिता हरिभद्रसूरि कोण होइ शके ते विशे जे ऊहापोह कर्यो छे, तेमां 'भवविरहांक' अने 'याकिनीमहत्तरासूनु' ओ बे हरिभद्रसूरिने जुदा दर्शाव्या छे अने तेओनो सत्ताकाळ पण जुदो जुदो नोध्यो छे. जैन परम्पराथी तो आ बंने हरिभद्रसूरि अक ज छे ते सिद्ध छे. पण ते विशे लेखके नथी नोंध लीधी के नथी बनेने जुदां गणवानां कारणो दर्शाव्यां. अस्तु. ___ पाश्चात्त्यदेशोमां पण जैनविद्यानो प्रसार थतो जाय छे तेनुं आ पुस्तक सूचकचिह्न छे. अने ओ रीते ओ चोक्कस आवकारपात्र छे.
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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