SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ अनुसन्धान- ५५ करेल जे १८२८मां कलकत्ताथी प्रगट थयुं हतुं. आ ज संग्रहनी १६० तमिलतेलुगु हस्तप्रतोनुं William Taylorनुं सूचिपत्र १८३५मां मद्रासमांथी बे खण्डोमां प्रगट थयुं हतुं. त्यार बाद अशियाटिक सोसायटी द्वारा ३००० संस्कृत अने १०७ आधुनिक भारतीय भाषाओनी हस्तप्रतोनुं संक्षेपमां वर्णन करतुं वर्गीकृत अने कोठाओमां विभाजित सूचिपत्र १८३८मां प्रकाशित करवामां आव्युं. आ 'सूचिपुस्तकम्' मां फोर्ट विलियम कॉलेज, अशियाटिक सोसायटी अने काशी संस्कृत विद्यामन्दिरनी हस्तप्रतो समाविष्ट छे. आ सूचिपत्रमां कोई प्रकारनी सूचि (Index) आपवामां आवी नथी ते तेनी मोटी मर्यादा छे. अन्य ओक महत्त्वपूर्ण सूचिपत्र विस्तृत नोंध अने सूचिओ सहितनुं GOML, Madras नुं ५५१५ हस्तप्रतो वर्णवतुं १८५७ - ६२ दरम्यान ३ खण्डोमां प्रकाशित करवामां आव्युं हतुं. ५. २ सुवर्णयुग (१८६९ थी १९०० ) अंग्रेजोनुं भारतमां सांस्कृतिक क्षेत्रे सौथी मोटुं मूल्यवान प्रदान भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण विभागनी स्थापना करी कला - स्थापत्योना संरक्षणनुं अने भारतीय हस्तप्रतोना सर्वेक्षणनुं काम हाथ धरी वेर - विखेर हस्तप्रतोना संग्रह, सर्वेक्षण अने सूचिपत्रो/अहेवालो तैयार करवा क्षेत्रे रह्युं छे. लाहोर दरबारना पूर्व मुख्य पडित राधाकृष्णना हस्तप्रतोना सर्वेक्षण अने सूचिकरण सम्बन्धी सूचनने ध्यान लई तत्कालीन गवर्नर जनरले आ प्रस्तावनो ता. ३ नवेम्बर, १८६८ना रोज स्वीकार करीने आ हेतुसर रु. २४००० /- अने Mr. Stokes (Secretary of Legislative Council) से तैयार करेल हस्तप्रतोना संग्रह अने सूचिकरणनी योजना मंजुर करी हती. आम छतां Mr. Stokes मन्तव्य धरावता हता के सूचित केलोग इंग्लेन्डमां ज संतोषकारक रीते सम्पादित थई शके कारण के “no native scholar possessed of the requisite learning, accuracy and persistent energy” अने वधुमां, “no European scholar in India possessed of the requisite time, or who might not be more usefully employed in making original researches.”१२ ३२ वर्षनो आ समयगाळो ओक सुवर्णयुग समान अटला माटे गणवामां आवे छे के समग्र भारतवर्षमां संस्कृत-प्राकृत भाषा साहित्यना पाश्चात्त्य तथा भारतीय प्रतिभासम्पन्न -
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy