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________________ मई २०११ शब्दवाच्यताने जोनारा नयोनी वात पहेला बे भंगमां समाइ जाय छे. तेथी व्यंजनपर्यायमां त्रीजो भंग सर्जातो नथी. अने बे भांगे पण शब्दनयाश्रित विचारणाने लगतो पूर्ण बोध थइ जाय छे. ओटले अज रीते प्रदेशादि स्थळे पण ओक भांगे पूर्ण बोध मानी लइओ तो वांधो नथी. ९९ स्तबकगत आ विवरण कया कया मुद्दे वादमहार्णवटीकाथी भिन्नता धरावे छे ते तपासीओ वादमहार्णव १. अर्थपर्याय- अर्थनय २. व्यंजनपर्याय- शब्दनय ३. सविकल्प - सामान्य/विकल्पोनो सद्भाव ४. निर्विकल्प - विशेष/विकल्पोनो अभाव ५. व्यंजनपर्यायमां सप्तभंगी अने द्विभंगी बन्ने शक्य छे. ६. उत्तरार्धमां अनुक्रमे अर्थनिष्ठ वाच्यता अने शब्दनिष्ठ वाचकता पर विचार करवामां आव्यो छे. ७. अवक्तव्यना शब्दविषय बनवानी आपत्ति शब्दनिष्ठ वाचकताना विचार वखते लागु पडे छे. द्रव्यगुणपर्यायरास- स्तबक १. अर्थपर्याय- अर्थगत अस्तित्वनास्तित्वादि धर्मो. २. व्यंजनपर्याय घटकुम्भादिशब्दवाच्यता ३. सविकल्प - विधि ४. निर्विकल्प - निषेध ५. व्यंजनपर्यायमां द्विभंगी ज शक्य छे. ६. उत्तरार्धमां अनुक्रमे अर्थनिष्ठ वाच्यता अने शब्दाश्रित नयमार्ग पर विचार करवामां आव्यो छे. ७. आ आपत्ति अर्थनिष्ठ वाच्यतानी विचारणामां लागु पडे छे. वादमहार्णवगत आ गाथानो भावार्थ मूळकारना आशयथी भिन्न होइ शके ते समजवा जे कारणो देखाड्यां छे (पृ. ९५), तेमांथी बीजा क्रमांकना कारण सिवाय बीजां बधां आ स्तबकगत विवरण माटे पण लागु पडे छे. अने तेथी लागे छे के श्रीसिद्धसेनसूरिजीने सम्मत आ गाथानो भावार्थ प्रस्तुत विवरण करतां जुदो ज होवो जोइओ.
SR No.520556
Book TitleAnusandhan 2011 06 SrNo 55
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages158
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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