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________________ फेब्रुआरी २०११ ६३ घटनाओ- अवलोकन करवू छे. अलबत्त, आ अवलोकननी पाछळ कोइर्नु खण्डन करवानी के विरोध-विवाद सर्जवानी दृष्टि नथी; मात्र इतिहासबोधनी ज दृष्टि छे. (१) हेमखाड __ हेमचन्द्राचार्यनो देहान्त पाटणमां सं. १२२९ मां थयो हतो. तेमना देहनो जे स्थळे अन्तिम संस्कार थयो, ते स्थाने चितानी भस्म वडे राजा कुमारपाले तिलक कर्यु, ते जोइने हजारो लोकोए तेनुं अनुकरण करतां त्यां खाडो पडी गयो, जे 'हेमखड्ड' - हेमखाडना नामे प्रख्यात थयो. (प्रबन्धचिन्तामणि, सिंघी ग्रन्थमाला, पृ. ९५) __ आजे पण पाटणमां ए स्थानने त्यांनी जनता हेमखाडना नामे ज ओळखे छे. दुर्भाग्ये कहो के इतिहासना प्रबल परिवर्तनने लीधे कहो, मूलतः जैन धर्मनुं अने जैनोना अधिकार हेठळनु ए स्थान आजे मुस्लिमोना कबजामां छे. तेमना कबजाने पण सैकाओ थया होय तो ना नहि. आजे त्यां तेमनी दरगाहो-कबरो-मस्जिद वगेरे प्रकारनां स्थानो जोवा मळे छे. थोडां वर्षो अगाऊ पाटणना एक पत्रकारे पोताना समाचारपत्रमा आ स्थान विषे ऊहापोह जगाडवानो प्रयास करेलो, परन्तु कट्टर कोमवादी परिबळोए तेने तत्काळ अटकावी दईने ते पत्रना ते अंकोनी तमाम नकलोनो विनाश करेलो, अने ते पत्रकारने चूप करी देवामां आवेलो. आ आखी वात मने स्व. कविवर मकरन्द दवेए कहेली. ते वृत्तपत्रनी नकल पण वंचावेली. अने पछी भारे हैये मने कहेलुं के "मुनि ! कोई रीते हेमचन्द्राचार्य जेवी विभूतिनी आ भूमि आ लोको पासेथी पाछी मेळवो, अने त्यां कांइ साधनास्थान करावो. ए भूमि निःशङ्क ऊर्जामय भूमि छे." आ एमर्नु अरण्यरुदन हतुं एम ए ने हुँ बन्ने जाणता हता. छतां एक उच्चकक्षाना साधक अने कवि-साहित्यकार, दर्दभर्या सादे आवी वात करे त्यारे ते अपील कर्या विना कम रहे ? वधुमां, तेमणे मने एक पुस्तक पण
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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