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________________ ६२ अनुसन्धान- ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ हेमचन्द्राचार्य माटे प्रवर्तेली भ्रमणाओ अने तेनुं निरसन विजयशीलचन्द्रसूरि श्रीहेमचन्द्राचार्य विषे घणुं घणुं लखायुं छे. समयना विविध तबक्के लखायुं छे, तेम विविध भाषामां पण लखायुं छे. ए एक एवं व्यक्तित्व छे के जेमना विषे सतत कांइ ने कांइ जाणवानुं गमे. अने जेम जेम एमना जीवननां पानां उथलावतां रहीए, एमना समयना इतिहासने फेरवतां रहीए, एमणे रचेला ग्रन्थोने तेमज ते उपर निर्माएला साहित्यने अवलोकतां रहीए, तेम तेम कांइक नवुं ज ज्ञातव्य प्राप्त थतुं रहे छे. फलतः तेमना प्रत्येनुं आकर्षण, घटवाने बदले, वधतुं ज रहे छे. तेमना जीवननी वातो लगभग जाणीती छे, एटले ते विषे अहीं कांइ लखवानुं नथी. परन्तु तेमना विषे केटलीक भ्रान्तिओ तेमज भ्रान्तिजनक वातो थती आवी छे, ते अंगे विचारणा करवानो अहीं उपक्रम छे. घणीवार एवो अनुभव थाय छे के इतिहास, महान व्यक्तिओने अन्याय करतो होय छे. आ विधानने हेमचन्द्राचार्यना सन्दर्भमां तपासीए तो, तेमणे तेमना जीवनकाल दरमियान शैवो अने ब्राह्मणो वगेरे, जैनोने नास्तिक माननाराओ साथे, ओछो संघर्ष नथी करवो पड्यो. अकबर-बीरबलनी कथाओमां जेम बीरबलने अन्योनी अदेखाईना भोग बनवुं पडतुं, पण ते पोतानी चतुराईथी मार्ग काढीने सौने भोंठा पाडतो, लगभग तेवी ज स्थिति, पण ते काल्पनिक नहि, परन्तु वास्तविक, हेमचन्द्राचार्यनी जोवा मळे छे. पोतानी प्रचण्ड बौद्धिक क्षमता, सत्त्व अने वीतरागी निःस्पृहताथी छलकाती उदारताने बळे तेओ दरेक प्रसङ्गे पोतानी सर्वोपरिता स्थापी शकता अने तेथी बीजा - ईर्ष्यालु जनोए चाट पडवुं पडतुं, ए अलग वात; परन्तु तेमणे सतत संघर्षरत तो रहेवुं ज पडतुं, एम तेमना जीवन-प्रसङ्गो जोतां जाणी शकाय छे. अने आ स्थिति फक्त तेमनी विद्यमानतामां ज सर्जाती एवं नथी. तेमना मृत्यु बाद पण तेमने अन्याय करे तेवी अनेक घटनाओ बनी छे. अहीं वी
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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