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________________ ५८ अनुसन्धान - ५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ ने आपणने पोताने माटे तो कंइ आंसु लावतां ज नथी. अने आपणे समजतां ज नथी के आपणने पण अमने एम ज ओक दहाडो मोतनुं बीछानुं सेववुं पडवानुं छे. ओक बळता जंगलमां हरण जेम नासभाग करवाथी कदी बची शकतुं नथी. तेवी रीते मनुष्योने आ जगतमां मोतथी छूटवानो कंइ रस्तो ज नथी.” हेमचन्द्रे जणावेला आ विचारना जेवा ज विचार बीजा देशना धर्मगुरुओ पण प्रसंगोपात्त जाहेर कर्या सिवाय रह्या नथी. ख्रिस्ती धर्मपुस्तक बाइबलमां पण कह्युं छे के “ओ मनुष्य ! तुं खोटा भरोसा पर बेसी रहेतो नहि. परमेश्वरने तुं छेतरी शकीश ओवो ख्याल तारा मनमां राखतो नहि. जेवां बीज रोपशे तेवां फळ तने मळशे से तुं हमेशां याद राखजे." हेमचन्द्रे वळी कह्युं छे के "माणस जे कंइ पैसा पेदा करशे ते सघळां पोतानी पाछळ मूकी जवा पडशे. ते कोइ बीजा वापरशे ने तेने पोताने तो फक्त पोतानां नठारां के सारां कामो साथे लइने ज जवुं पडशे. तेनां सारां के नठारां कामो ज तेने शिक्षाना कारणरूप अथवा मुक्तिना साधनरूप थइ पडशे." हेमचन्द्र आ सघळं जणाव्या पछी पुनर्जन्मना मत विषे बोले छे. अ पुनर्जन्मनो मत जेम अशियाना बीजा केटलाक धर्ममां पण कबूल रखायेलो छे. तेवी ज रीते जैनमतमां पण पुनर्जन्मना मतने सर्व प्रकारे मानवामां आव्यो छे. आ पुनर्जन्मना मतने ख्रिस्ती लोको मानता नथी ने युरोपमां से पुनर्जन्मना मत तरफ हजी लोकोनी लागणी नथी. हेमचन्द्रे वळी दरेक माणसने पोतानुं कर्तव्य करवानी बाबतमां जे बोध करेलो छे ते पण ओवो उत्तम छे के तेनां जेटलां वखाण करीओ तेलां ओछां छे. ते कहे छे के "जे मनुष्य पोतानी इन्द्रियो वश राखतां शीख्यो ते आ जगतरूपी समुद्र तरी गयो अम समजवु. दश प्रकारे माणसोओ पोतानी इन्द्रियो वश राखवानी ने प्रामाणिकताथी जे माणस पोतानी जिंदगी गाळशे; ते माणसनी आ जिंदगीने अन्ते जरूर मुक्ति थया सिवाय रहेशे नहि. ने तेने दुनियामां पाछो जन्म लेवो रहेशे नहि. जगतमां कर्तव्य अ वस्तु सर्वथी मोटी छे. जे माणस पोतानुं कर्तव्य बराबर करे छे ते हमेशां परिणामे सुखी थया सिवाय रहेतो नथी. आ दुनियारूपी समुद्रना अगाध पाणीमांथी
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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