SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ बनी शके, (जो के ते बनी शकशे ज नहि) तो पण तेवं मोटुं दान आपवाथी पण ते हत्यानुं पाप धोवाई शकनार नथी. निर्दोष हरणो जंगलमा स्वतन्त्र रीते भटकतां फरतां होय ने घास, पाणी ने हवाथी पोतानुं पेट भरी तेटलेथी सन्तोष पामी पोतानी जिंदगी गाळता होय; ते बिचारां हरणोनो शिकार करी तेमनो जीव लेवाने जेओ ताकता होय तेवा मनुष्योमां तथा कुतरामां शो फेर छे ? जो घासनो ओक नानो सरखो कांटो तमारा शरीरमां भोंकाय तो तमने तेथी बहु दुःख थाय छे. छतां मोटां मोटां तीणां भालां लइने आ निर्दोष प्राणीओना शरीरमां घोंचवा माटे तमे उमंगथी दोडादोड करी मूको छो ओ केवू दुष्ट छे ! फक्त बे घडीनी मोज मेळववा माटे सहेजमां तेनी व्हाली आखी जिंदगी लूटी लेवानी तमे रमत रमो छो. मोतनी कंइ पण वात तमारा सांभळवामां आवे छे त्यारे तेटलुं सांभळता वार तमने थरथरी आव्या वगर रहेती नथी. छतां केवळ स्वच्छन्द पणे तमे आ बिचारा प्राणीओने झट मारी नाखो छो ओ केवू ?" मन, वाचा तथा काया ओ त्रणे प्रकारे स्वच्छ रहेवानी बाबत सम्बन्धे पण हेमचन्द्रे बहु लंबाणथी लख्युं छे, पण ते सघळु अq छे के जे माराथी अत्रे आपी शकाय नहि. पृथ्वी परना सघळा देशोना साधुओनी पेठे हेमचन्द्र पण कहे छे के आ जगतनो व्यवहार पुरुषवर्गथी ओकलो चलावी शकवानी गोठवण जगतकर्ताओ करी होत तो ते बहु सुखदायी थइ पडत. मनुष्यमात्रनो आ जगतमां जन्म थवानुं कारण स्त्रीजात छे. ने दुनियामां जन्मवाथी आपणने अनेक प्रकारना दुःखना भोक्ता थर्बु पडे छे. तेथी बराबर रीते कहीओ तो स्त्रीजात दुनियामां सर्वे प्रकारना दुःख, मूळ कारण छे.* पोतानो आ सिद्धान्त खरो करी आपवाने हेमचन्द्रे अ विषे लंबाणथी विवेचन करी बहु ऊंचा प्रकारनी पोतानी तर्कशक्ति बतावी आपी छे. अमां कशो पण शक नथी. परस्त्रीनी मोहजाळमां राजाओ कदी पण न फसावा सम्बन्धे तथा तेथी थता नुकशाननुं वर्णन ओवा योग्य शब्दोमां हेमचन्द्रे कर्यु छे के ते सम्बन्धे बाइबलमां करवामां आवेला वर्णन करतां जे वर्णन कोइपण रीते ऊतरतुं नथी. ★ हेमचन्द्राचार्ये स्त्रीने 'सर्वदुःखो, कारण' तरीके देखाडी छे ते 'मनुष्यने ओ ज जन्म आपे छे' कारणथी नहि. पण स्त्री मोह उत्पन्न थवानुं प्रबळ निमित्त छे अने मोह ज जीवने संसारमा भ्रमण करावे छे ओम समजावीने स्त्रीने दुःखनी खाण कही छे.
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy