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________________ फेब्रुआरी २०११ अंग्रेज विद्वान डॉ. पीटर पीटर्सन- प्रवचन : पूना, डेक्कन कॉलेज विषय : श्रीहेमचन्द्राचार्य तथा योगशास्त्र भूमिका [नोंध : डॉ. पीटरसन ए संस्कृतज्ञ तथा भारतीय संस्कृतिना अंग्रेज विद्वानो पैकी अग्रणी विद्वान हता. अंग्रेज सरकारना ते उच्चाधिकारी हता. तेमणे समग्र भारतना प्रमुख ग्रन्थभण्डारोनुं बारीक अवलोकन करेलु, अने ते विषेनी तेमनी नोंधो डॉ. पीटर्सनना रिपोर्ट एवा नामे खूब जाणीती अने आदरपात्र बनेली. ए रिपोर्टो आजे तो अप्राप्य छे. आवा आ विद्वाने हेमचन्द्राचार्य तथा तेमना ग्रन्थ योगशास्त्र विषे ओक अभ्यासपूर्ण प्रवचन इंग्लिशमां आजथी अन्दाजे १०४ वर्षो अगाऊ आपेलुं. तेनो गुजराती तरजुमो भावनगरथी प्रकाशित थता 'जैन धर्मप्रकाश' नामे मासिकना २४मा पुस्तकमां ८मा अंकमां अटले के संवत् १९६४ना कार्तकमासना अंकमां प्रगट थयेलो, ते 'अनुसन्धान'ना वाचको माटे अहीं प्रगट करवामां आवे छे. आ प्रवचननी भाषा, जोडणी, रजूआत - बधुं जेमनुं तेम राख्युं छे. केटलाक मुद्दा एवा छे के जेमां डॉ. पीटरसननी रजूआत खोटी अथवा गैरसमज भरेली छे. परन्तु ते कांई कोई खास इरादापूर्वक करवामां नथी आवी, पण विषय परत्वेना अज्ञान थकी के विषयनी खोटी समजमांथी ऊभी थयेली छे, ते सुज्ञ वाचक सुपेरे समजी शकशे. दा.त. आलिग पुरोहितनो जैन साधु उपर आक्षेप तथा तेनो हेमाचार्ये आपेल जवाब. आ संवाद बराबर रजू थयो नथी. परन्तु अभ्यासी वाचको तेनी स्पष्टता माटे 'प्रबन्धचिन्तामणि' वगेरेमां मूळ सन्दर्भ सुधी जई शके छे. ते ज प्रमाणे 'सोळ जणाए व्याख्यान श्रवण करवू' एवं विधान हेमचन्द्राचार्यना नामे करेल छे, ते पण योगशास्त्रना जे ते श्लोकमां 'अष्टभिर्धीगुणैर्युक्तः शृण्वानो धर्ममन्वहम्' एवा पाठने बदले 'अष्टभिर्द्विगुणैर्युक्तः' एवो पाठ तेमणे वांची लीधो होय तेने कारणे तेवू विधान कल्पी लीधुं जणाय छे. आवी बीजी पण केटलीक बाबतो हशे ज.
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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