SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान - ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ नोंधपात्र तफावत छे तेमां ओक धारणाना स्वरूप विशे छे. प्र.न.मां अपायनी लांबा काळ सुधीनी विद्यमानताने ज धारणा गणी छे, ' के जे अविच्युति नामनो धारणानो प्रकार छे. ज्यारे प्र. मी. कार अविच्युतिने स्थाने वासनाने धारणा गणे छे. आम प्र.मी. अने प्र.न. बन्ने त्रण धारणाने निरूपती आगमिक परम्पराथी जूदा पडवा छतां परस्पर भिन्नता धरावे छे. वासनाने प्रत्यक्षज्ञानरूप सिद्ध करवी ঔ अघरुं होवाथी प्र.न.कार ने प्रत्यक्षना भेद तरीके न गणता होय ओ बनवाजोग छे. ३६ अविच्युति अपायमां ज समाई जाय छे - २ ओवा प्र.मी.कारना कथननी सामे उपा. श्रीयशोविजयजीओ तत्त्वार्थभाष्य-विवरणमां ३ स्पष्टता करी छे के अपायनुं लांबा काळ सुधी टकवुं अ ज अविच्युति ओम कहेवाय छे खरुं; परन्तु वास्तवमां ‘आ घट छे, आ घट छे' आवी धारावाहिक ज्ञानपरम्परा अविच्युति छे. जेम दीपकलिका नवी नवी उत्पन्न थती होवा छतां सदृशताने लीधे ओक ज ज्योतनो भ्रम थाय छे; तेम नवा नवा निश्चय थता होवा छतां तेओनो आकार अत्यन्त समान होवाथी आपणने ओक ज निश्चय लांबा काळ सुधी टक्यो ओम लागे छे. माटे अविच्युतिनो अपायमां अन्तर्भाव करी शकाय नहीं. आ उपरान्त अविच्युतिने अपायथी अलग गणवानुं कारण उपाध्यायजीओ जैनतर्कभाषामां४ अ जणाव्युं छे के तृणस्पर्श जेवा विषयोनी स्मृति आपणने नथी थती, अने अपाय तो त्यां पण थयेलो होय ज छे. आ वस्तु जणावे छे के स्मृति माटे अपाय सिवाय पण कोईक हेतु होवो जोईओ. अने आ हेतु ओटले ज अविच्युति. अपाय बधे सरखो होवा छतां स्मृतिमां पडनारा स्पष्ट, स्पष्टतर व. भेदो पण एमनी कारणभूत अविच्युतिनुं स्वतन्त्र अस्तित्व सिद्ध करे छे. संस्कारने वि.भाष्य-टीकामां स्मृतिज्ञानावरणीयना क्षयोपशमरूप के १. प्र. न. - २.१० २. ‘“साऽवाय एवाऽन्तर्भूतेति न पृथगुक्ता ।" - प्र.मी. - १.१.२९ टीका ३. १.१५ना अन्तभागमां. ४. जै. त. - परि. १५, १६
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy