SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ श्रीहेमचन्दाचार्यनी अगमवाणी सं. विजयशीलचन्द्रसूरि "त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' ए हेमचन्द्राचार्यनो रचेलो, ३६००० श्लोक प्रमाण महाकाव्यग्रन्थ छे. दश पर्वोमां पथरायेल आ महाकाव्यमां जैनोना २४ तीर्थङ्कर तथा १२ चक्रवर्ती राजा समेत ६३ शलाकापुरुषोनां कथाचरित्रोनुं वर्णन छे. ते ग्रन्थना १०मा पर्वना अन्त भागमां तेमणे, हवे पछीनो समय केवो हशे तेनी आगाही कहो के भविष्यकथन, आपेल छे. वर्तमान परिस्थिति साथे तेमनी ते भविष्यवाणी महदंशे मेळ खाती होवाथी ते श्लोको अनुवाद साथे अत्रे आपेल छे. श्लोकोने १-१६ क्रमाङ्क वाचकोनी सुगमता खातर ज आप्या छे. मूळ क्रमाङ्क जुदा छे. आ आगाहीओनी सच्चाई विषे विचारीए तो - लोकमां कजियाकंकासनी वृद्धि अने मर्यादालोप (श्लोक १) आजे व्यापकपणे अनुभवाय छे. भारतवर्षनी आर्य प्रजामां, विशेषे गुजरात-मारवाडनी प्रजामां जे सहज अहिंसा तथा दयादानना संस्कारो हता ते, विधर्मीओना नठोर सहवास थकी नामशेष थवामां छे (श्लोक २). गामडां पडी भांग्यां छे, अने शहेरोमां थती गीचताने लीधे चारेकोर भूतावळ नाचती होय तेवू लागवा मांड्युं ज छे. गृहस्थो, खेडूतो, कणबीवर्ग पोताना खेती आदि व्यवसाय छोडीने नोकरी शोधवा फरे छे ज. अने शासकोनी क्रूरताथी प्रजा क्यां अजाण छे (श्लोक ३)? । आपणा समाजमां मत्स्य न्याय आजे प्रवर्ते छे ज. दा.त. पोलिसकर्मी ज्यारे हप्ता उघरावे छे त्यारे तेना शिरे छेक सर्वोच्च व्यक्ति सुधी हिस्सो पहोंचाडवानी जवाबदारी होय छे. आ मत्स्य न्याय नथी तो शुं छे ? आवं तो बधा ज क्षेत्रमा जडशे (श्लोक ४). अस्पृश्यतानिवारणना मनुष्यहितकारी आन्दोलनथी लईने आधुनिक अनामतपद्धतिना राजकारणनी वास्तविकतानुं निरीक्षण करीए तो, अने बे विश्वयुद्धो, भारतना भागला, इराक पर आक्रमण वगेरे बनावोना सन्दर्भ याद राखीए तो, श्लोक ५ मांनी वात समजाई जशे. ___श्लोक ६नी दरेक वातनो अनुभव आपणे निरन्तर करीए ज छीए. श्लोक ७मां आपणा साम्प्रत स्वार्थी समाजनुं मार्मिक चित्रण थयुं छे. तो ८मा
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy