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________________ फेब्रुआरी २०११ ११९ ऐं नमः अहँ नमः ॥ श्रीगुरुभ्यो नमः ॥ श्रेयश्रीरतिगेह छो जी, सुरनरपती नतपाय सर्वजांण अतीसंनिधिजी, जय उपयोगी अभाय जगतगुरू ! विनतडी अवीधार. १ जगआधारक पामयिजी, नीकारण जगबंधु, भववीकारगद टालवाजी, वैद्य छो गुणसिंधु, जगतगुरु !..... २ जांण भणि जे भाख्यवोजी, ते तो भोलीमभाव, पिण अशुधता आपणीजी, वीनवीये लही दाव', जगतगुरु !..... ३ मावीत्र३ आगे बालकेजी, स्यूं जि जैन कहाय, साचूं पश्चातापथीजी, निज आसय कहेवाय, जगतगुरु !..... ४ दान-सीयल-तप-भावनाजी, जीन आणाए न किध वृथा भम्यो भवसायरेजी, आतमहित नवी लीध, जगतगुरु !..... ५ क्रोध अग्नी दाध्यो घणोजी, लोभ मोहोरग दृष्टि, मांन ग्रह्यो माया कल्योजी, केम सेवू परमेष्ठि, जगतगुरु !..... ६ हीत न कर्यो में परभवेजी, इहां पिण नहीं सुख चूंप (?), हो प्रभू ! अम भव सत्यकथाजी, केवल पूरणरूप, जगतगुरु !..... ७ प्रभूमुखचंद्र संयोगथिजी, माहानंद रस्य जोर, नवि प्रगट्यो तेणे वज्रथिजी, मुझ मन अतिय कठोर, जगतगुरु !..... ८ भव भमियो दुर्लभ लहिजी, रत्नत्रय तुम साथ, ते हारी निज आलसेजी, किहां पूकारुं नाथ, जगतगुरु !..... ९ मोहविजय वैराग्य जे जी, तेह पररंजन काम, निज पर तारण देसनाजी, ते जनरंजन ठांम, जगतगुरु !..... १० विद्यातत्त्व परिपदाजी, ते परजिपणढाल, परमदयाल केति कहूंजी, मुझ हासानी चाल्य, जगतगुरु !..... ११ परनंद्या मुख दुहव्योजी, परदुख चिंत्यो रे मन, पर अस्त्री जोवे आंखडिजी, किंम थासे हुं धन्न, जगतगुरु !..... १२
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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