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________________ ११८ सं. मुनिसुजसचन्द्र - सुयशचन्द्रविजयौ आत्मज्ञाननी सर्वश्रेष्ठ कक्षाए पहोंचेला श्रेष्ठयोगीनी तत्वप्रचुर संवेदना एटले पू. देवचन्द्रजीनी स्तवनावली, अथवा बीजी रीते विचारीए तो सूक्ष्म पदार्थोनो रसास्वाद करावती सुमधुर पद्य रचनाओ. कवि देवचन्दजीनी एक अप्रगट रचना "रत्नाकर पच्चीसीभास" प्रस्तुत कृति पू. देवचन्द्रजीनी तात्त्विक रचनाओमांनी एक अप्रगट रचना छे. पू. रत्नाकरसूरिजीए युगादीश श्री आदिजिन समक्ष दोषोनी आलोचना करता ‘रत्नाकरपञ्चविंशिका' नामनी संस्कृत कृतिनी रचना करी. पू. देवचंद्रजीए मूळ संस्कृत पद्योना भावोनुं उद्धरण करी गुर्जर पद्यानुवाद रूपे सौ प्रथम 'रत्नाकर पञ्चविंशिका भास" नामनी कृतिनी रचना करी. 44 अनुसन्धान - ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २ कृतिमां कुल ३४ पद्यो छे. तेमां २८ पद्यो सुधी मूळ संस्कृत कृतिना भावोनो अनुवाद करी अन्त्य पद्योमां जिनमतविरुद्ध प्ररूपणा, 'तत्त्वप्ररूपक' उपमाथी गर्व जेवा जेवा विशेष अतिचार ( दोषो) पर प्रकाश पाड्यो छे. कृतिना अन्तमां पोतानी गुरुपरम्परा नोंधी ग्रन्थनुं समापन कर्तुं छे. रोग देवचन्द्रजीना जीवनचरित्र उपर तथा तेमना साहित्य ऊपर घणुं साहित्य प्रकाशित थयेलुं छे. माटे ते माटे ते कृतिओ जोइ लेवा जिज्ञासुओने निवेदन छे. शब्दकोश १. गद = २. दाव = अनुकुळ समय, लाग ३. मावीत्र = माता-पिता ४. रस्य = रस ५. चूंप = ? ६. परिपदा ७. घूसियो : = उपनाम / पदवी(?) ८. धायुं = ध्यायुं - ध्यान कर्यं ९. कल्या = जाण्या १०. कोज्य = ११. विट = व्यभिचारी माणस जेल ? १२. कारा = १३. निदांन = कारण १४. आश्चर = आश्चर्य(?)
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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