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________________ ११० जिनपादरतं ३. श्रीहीरविजयसूरिस्वाध्याय श्री नन्दनरूपं | ध | रसारं । | श्री | सिद्धान्तनि । रू पणकारं, वन्दे हीरविजयगणधारं नन्दाकरवि द्या | धारं वि द्वज्जनकृतध म | विचारं ही | नाचारनगे । प विधारं, वन्दे हीरविजयगणधारं दनदं भव सा | गरपोतं | ज | यजयरवपर | सा | धुकपोतं | र त्नत्रयधारक | ऋषिसारं, वन्दे हीरविजयगणधारं रदावानलभं ग | सुनीरं । य | तिनाथं गुण | ग | णगम्भीरं वि | दितविपुलऋ षि भाषिते सारं, वन्दे हीरविजयगणधारं श्वसुरासुरव नतपादं नदयाबलभ जितवादं ज | यकरपालित | पं चाचारं, वन्दे हीरविजयगणधारं दनवधैक उ | मेशसमानं | न | मेनरोत्तम । उ | त्तममानं य त्नभरेण विखं डि| तमारं, वन्दे हीरविजयगणधारं लनाजन[वि] | पा | तारं सू | नाबन्धन पा | तनिवारं | सू रकिरणखर | त पसाऽवारं, वन्दे हीरविजयगणधारं मुखं सू रीश्वरमुकुटंध्या नेशं री | तिबलेनाऽ | ध्या | पितमेशं री | ण मोहभट | गु रुविस्तारं, वन्दे हीरविजयगणधारं रि पुसन्दोहविज । य निष्णातं | श | मकरं सु । य | शोविख्यातं श | मसुखदं सुरत रु अवतारं, वन्दे हीरविजयगणधारं निखिलमुनीशशिरोवतंसं नाथीकुक्षिसरोवरहंसं, साहकउंराकुलकजकासारं, वन्दे हीरविजयगणधारं ॥ गणधरविजयदानगुरुसीसं, भविजनपूरितचित्तजगीसं, विद्याकुशलकीरे सहकारं, वन्दे हीरविजयगणधारं ।। ॥ इति पं. विद्याकुशलकृतः श्रीहीरविजयसूरिस्वाध्यायः । सं. १६१७ वर्षे चैत्र शुदि ५ दिने कृतः ॥ अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
SR No.520555
Book TitleAnusandhan 2011 02 SrNo 54
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2011
Total Pages209
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size2 MB
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