SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-१ वपरायेला पयलाय शब्दनो अर्थ 'कामदेवना बाणो वडे हणायेली' अवो करे छे ते बराबर नथी, केमके प्राचीन देशीसङ्ग्रहोमां पयलाय शब्द 'सर्प' अर्थने सूचित करतो वपरायो छे. आनी पुष्टि माटे सङ्ग्रहकारे अभिमानचिह्न नामना सङ्ग्रहकारे पण आ शब्द 'सर्प'ना अर्थमां वापर्यो छे ते दर्शावती उदाहरणगाथा (५७४) पण आपी छे. आवं ज बने छे समुच्छणी शब्दना अर्थनी बाबतमां. ओक सङ्ग्रहकार वहुआरिय शब्द जे 'वहु' अर्थनो सूचक छे तेनो समानार्थी समुच्छणी शब्दने गणावे छे तेमां व अने ब वर्ण-वाचना भूल होवानुं मानी आचार्यश्री नोंधे छे के ते शब्द 'बहुआरिय' छे अने तेनो अर्थ 'सावरणी' छे. आम ‘सावरणी'ने बदले नोंधायेलो 'वहु' अर्थ बराबर नहीं होवानुं हेमचन्द्राचार्ये स्पष्ट करी बताव्यु छे. तेओ- 'सावरणी' अर्थनी पुष्टि माटे बीजा अनेक देशीसङ्ग्रहकारोनां उदाहरणो पण टांके छे. ___ आवी वाचनानी भूलो करनाराओने लिपिभ्रष्ट कहीने हेमचन्द्राचार्ये उमेरे छे के देशीशब्दसङ्ग्रहोमां आq आq तो घjबधुं छे, परन्तु आम बीजाना दोष काढवा ते उचित नहीं होवा छतां, अभ्यासीओने अर्थ मेळववामां मुश्केली न पडे ते माटे तेमणे आ लख्युं छे. आ ग्रन्थमा तेमणे अनेक मतो नोंध्या छे तेमांथी जे मत योग्य जणातो होय तेने स्वीकारवामां संकोच अनुभव्यो नथी. तेमणे खुल्ला मनथी ओम पण जणाव्युं छे के आवा विवादग्रस्त शब्दोना विषयमां देशीशब्दोना ज्ञाता पण्डितोनो निर्णय आखरी प्रमाणरूप गणाय. सङ्ग्रह अंगे सम्पादकनी चर्चा : आ सङ्ग्रह अंगे सम्पादक पण्डितजी जणावे छे के आखोय ग्रन्थ बराबर अनुक्रमथी गोठवायेलो छे. आचार्य हेमचन्द्रजीना आ ग्रन्थ पूर्वे, व्यवस्थित क्रम साथे रचायेलो आवो कोई ग्रन्थ हतो नहीं. अभ्यासीओने शब्द शोधवामां मुश्केली न पडे तेनो ख्याल राखीने आचार्यश्रीओ आ ग्रन्थ रच्यो छे. आमां शब्दो आपवानी साथोसाथ ओ शब्दोना व्यवहार वपराशने समजावती उदाहरणगाथाओ आपी होवाथी शब्दनो आवो प्रयोग अर्थनी स्पष्टतामां उपयोगी बने छे. अकार्थी अने अनेकार्थी शब्दो आमां अपाया छे. मूळग्रन्थनी गाथाओ प्राकृतभाषामा छे अने तेना परनी वृत्ति आचार्यश्रीओ पोते ज रचीने संस्कृतभाषामां
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy