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अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १
मुद्रित प्रतमां जोके ओने सकलार्हत्स्तोत्रवृत्ति तरीके ओळखवामां आवी छे, पण स्वयं टीकाकार अने 'नमस्कार' नी वृत्ति तरीके ओळखावे छे. प्रथमादर्शनी पुष्पिका - " इति कलिकालसर्वज्ञबिरुदधारक श्रीहेमचन्द्रसूरि-विरचित नमस्कारवृत्तिर्विरचिता । प्रथमपाठिसंस्मरणायेति मङ्गलम् ॥ छापेली वाचनानी पुष्पिकामां पण “चतुर्विंशतिजिननमस्काराणां वृत्ति' ओवो उल्लेख छे. हजी थोडा समय पहेलां सुधी उपरोक्त २६ श्लोको ज सकलार्हत्स्तोत्र तरीके गणाता हता, अने पाक्षिक प्रतिक्रमणमां अटला श्लोकोनो ज पाठ थतो हतो अवुं मने गुरुभगवन्त पासेथी जाणवा पण मळ्युं छे.
+ अत्यारे बोलाता सकलार्हत्स्तोत्रमां अने टीकाकारे लीधेला पाठमा केटलीक जग्याओ तफावत छे :
श्लोक
बोलतो पाठ
७८
३
५
७
-
ऋषभस्वामिनम्
श्री सम्भव०
०त्तेजिताङ्घ्रि
वः श्रियम्
०महिताङ्घ्रये
० स्पर्द्धिकरुणा०
टीका-पाठ
वृषभस्वामिनम्
श्रीशम्भव ०
०त्तेजितांहि०
वः शिवम् (त्रिषष्टिमां पण)
०महितांहूये
०स्पर्द्धा, करुणा० (त्रिषष्टिमां पण)
-
८
९
१६
२०
०नाथस्तु भग० ० नाथः स भग० (त्रिषष्टिमां पण) + अत्यारे सामान्य रीते 'महेन्द्रमहितांह्रि' (श्लोक ९) जेवा समासोनो विग्रह आ रीते करवामां आवे छे - 'महेन्द्रैर्महितौ महेन्द्रमहितौ, महेन्द्रमहितौ अंही यस्य स महेन्द्रमहितांहि : ' मतलब के पहेला तत्पुरुष समास करी पछी बहुव्रीहि समास करवामां आवे छे. छापेली वाचनामां पण अवो ज समासविग्रह छे. ज्यारे प्रथमादर्शमां आवा तमाम स्थाने 'महेन्द्रैर्महितौ अंही यस्य स' ओवो त्रिपद- बहुव्रीहि ज दर्शाववामां आव्यो छे. वृत्तिलाघव कदाच आनुं कारण होइ शके. आवां बीजां स्थानो- ०दर्शसङ्क्रान्तजगत् (श्लोक ४), ०शाणाग्रोत्तेजितांहिनखावलिः (श्लोक ७), ०ज्योत्स्नानिर्मली