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________________ अनुसन्धान - ५३ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - १ अहीं सम्पादके करेलुं ‘की गाइ' पदविभाजन जरूरी नहोतुं. 'कीगाई' (= केकारव करीने) शब्द पाठ अने अर्थ दृष्टिए वधु उचित जणाय छे. शब्दकोशमां सम्पादके आपेला केटलाक शब्दार्थो जे - ते स्थानसन्दर्भे अशुद्ध जणाय छे. जेमके कर्ताए 'शांणा आगलि सुंडल मांडइ' (१/७६) एवी एक कहेवतने उपयोगमां लीधी छे. त्यां सम्पादके 'शांणा' नो अर्थ 'छाणां' कर्यो छे. नजीकना उच्चारसाम्यने लईने केवळ अनुमानथी आ अर्थ अपायो लागे छे. हकीकते, 'शांणा' एटले कोठीमांथी अनाज काढवानुं छिद्र. त्यां सुंडलो धरी राखतां छिद्रमांथी अनाज ठलवातुं जाय. ७६ 'दीख्या' (२ / ११२) नो अर्थ 'देखाया' अपायो छे. साचो अर्थ छे 'दीक्षित थया'. गिरनार उपर गयेला नेमिनाथना सन्दर्भे आ क्रियारूप आवे छे. 'नरवरविंदा' (१/२२) नो अर्थ ' श्रेष्ठ राजाओ' अपायो छे. आ अर्थ माटे सम्पादके वर+नरइन्द्र नरइंदो > नरविंदो एवी व्युत्पत्तिनो आश्रय लीधो छे. पण ‘नरवरविंदा' एटले 'राजाओनुं वृंद' ए अर्थ होवानी शक्यता विशेष जणाय छे. आ उपरान्त केटलाक शब्दोनी अर्थशुद्धि नीचे प्रमाणे छे : अणूरी (१/६८) = दासी, पत्नी अशुद्ध; अधूरी, असन्तुष्ट शुद्ध. ऊजाणी (१/७२) = कूदीकूदीने अशुद्ध; धसमसीने, दोडीने शुद्ध. घाठी (१/७२) = नुकसान पामी अशुद्ध; छेतराई शुद्ध. वेडि (२/१७) = तकरारमां अशुद्ध; वनमां, रानमां शुद्ध. तोडीइ (२/३३) चमके अशुद्ध; नाखवामां आवे शुद्ध. खुरमां (२/३७) रोटला अशुद्ध; एक फळमेवो, खजूर शुद्ध. द्रूय (२/१५९) = वृक्ष अशुद्ध; ध्रुवनो तारो शुद्ध. = = ★ आ लेखमां सम्पादननी केटलीक पाठ / अर्थशुद्धि माटे 'मध्यकालीन गुजराती शब्दकोश' (सं. जयंत कोठारी) नी तेमज प्रस्तुत सम्पादनग्रन्थनी, डॉ. हरिवल्लभ भायाणीनी अंग नकल (जे हवे श्री नेमिनन्दन शताब्दी ट्रस्टना ग्रन्थालयमां भेट अपायेल छे) मां करायेली निशानीओनी सहाय मळी छे तेनी साभार नोंध लडं छं. C/o. ७, कृष्णा पार्क, खानपुर, अमदावाद - १
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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