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________________ डिसेम्बर २०१० एकसरखो वर्णक्रम जोवा मळे छे. वळी, प्रथम अने त्रीजा चरणना भिन्न भिन्न अर्थमां प्रयुक्त 'देवी' शब्दमां यमक प्रयोग छे. उपरांत 'स'कार अने 'द'कारनां. उच्चारणो द्वारा वर्णसगाई, तेमज ‘पयकमल' – “विमल' जेवा शब्दानुप्रास एक विशिष्ट लयसंगीत सर्जी रहे छे. 'हिवइ हउं बोलउं मेल्ही माया,तूं कवियणजण केरी माया, बहु गुणमणि तुझ अंगि समाया, अवगुण अवर अनंत गमाया. (१/२) आ बीजा कडीमां पण उपर निर्देशेलु काव्यसौन्दर्य माणी शकाशे. लगभग आखी कृतिने कविए आम प्रासानुप्रासथी सजावी छे. पांचमी कडीमां कवि 'नव नव छंदिइं कवित कहउं' एम कहीने कृतिमां छन्दवैविध्य माटेनी पोतानी संकल्पबद्धता व्यक्त करे छे. प्रसन्न थयेली सरस्वती पासेथी अविरल वाणीनी भेट स्वीकारीने कवि नेमिचरित्रनो आरम्भ करे छे. २१ थी २५ कडीमां नेमिना जन्मोत्सवने कविए वर्णव्यो छे. देवो अने मानववृन्दो उत्सव मांडे छे, स्त्रीओ धवल-मङ्गल गीतो गाय छे, शेरीए शेरीए वाजिंत्रनाद थाय छे, तेमज बन्दीजनो, भाट-चारणो नेमिजन्मने वधाववा नगरने मार्गे प्रयाण करे छे. २६ थी ४० कडीमां प्रथम बाळनेमिनां वस्त्रालङ्कारोने वर्णवी कवि नेमिना अङ्गबळनुं विस्तारथी वर्णन करे छे. कृष्णनी आयुधशाळामां पहोंचीने नेमि मोटी शिला उपाडे छे, गदाने फंगोळे छे, शङ्ख फूंके छे, धनुष्यने उपाडी स्थानचलित करे छे. नेमिना बळप्रयोगना पडेला प्रत्याघातोना वर्णनमां कविए रवानुकारी क्रियापदोवाळां चित्रो सा छे अने हास्यनी छांट उमेरी छे. 'तिणि अवसरि धरणी धडहडई, दह दिसि गयणंगण गडगडए, गज अध-गज जातां आथडइए, गिरिसिरि सिखर खडहडए. (१/३३) रोसि भरी नारी तडफडए, विण त्रेवडि ऊत्रेवडि पडए, महीयलि नाद सुणी एवडए, चंद-सूर बेहु लडथडए.' (१/३४)
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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