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डिसेम्बर २०१०
श्रीअचलगच्छे दिनदिन दीपे, पुण्यसागर सूरीराया । तेह गुरुना सुपसाय लहीने, थंभण तीरथ गाया रे । पर० ॥४॥ संवत सतर(?) ओगणपचलोतरा वरसे, काती सुद छठे मलाया । उज्वलपक्षे श्रीबुधवारे, ओ अभ्यास बनाया रे । पर० ॥५॥ चोवीह संघतणा दिल हरख्या, सांभली तीरथमाला । श्रवणे सुणी सुख सम्पदा लेसे, मुक्ति झाकझमाला रे । पर० ॥६॥
कळश इम तीर्थस्वामी तीर्थस्वामी गाईया में हर्षे करी, गुणलाभ जाणी हिये आणी प्रभुनामनी स्तवना करी । नरनारी गास्ये अधिक उल्लासे भावभक्ति मन थिर करी, जिननाम भावे सुणो नाम मंगलीक जय वरी ॥१॥
॥ इति थंभणतीरथमाल ॥
टाइटल १
श्रीगिरनार तीर्थमां पर्वत उपर श्रीनेमिनाथ भगवानना मुख्य जिनालयना रंगमण्डपमां भगवाननी सामेनी भींत उपर एक गोखमां विराजमान आ पुरातन गुरुमूर्ति छे, जे त्यां "हेमचन्द्राचार्य" तरीके ओळखाय छे. आ मूर्ति जूना पहाडी-पत्थरमांथी घडाई होय अने ते पर ऊडझूड लेप करायो होय तेवू लागे. टाइटल ४
हेमचन्द्राचार्यना गोखनी बाजुना ज गोखमां विराजित आ प्रतिमा 'कुमारपाळ राजा'नी छे एम त्यां प्रसिद्धि छे. आ प्रतिमा पण पहाडी पत्थरनी ज घडेली छे अने लेपथी विकृत थयेल छे.
बन्ने शिल्पो घणां पुराणां होवानी सम्भावना छे.