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________________ डिसेम्बर २०१० नृगंथ - अनगार मोक्ष - अपवर्ग, सिद्धि वणारीस - वाचकमिश्र शास्त्र - श्रुत पड्यास - पण्डितमिश्र पूज्य - भगवान् क्षलक - वग्नेय (विज्ञेय?) कलाण - माङ्गल्य, भद्र दीक्षा - प्रव्रज्या ॥ इति शब्दसंस्कार ॥१॥ छ । ए ६०॥ अहूँ ॥ उक्तः पञ्चधा कर्ता - १. कर्म, २. भावि, ३. कर्मकर्ता, ४. हेतुकर्ता (?) ५. नष्टकर्ता ॥ हुं (हुउं ?) भूतम्, जातम् उपाजिउं - उपार्जित, अर्जित पीधुं - पीतम् छाडउं - त्यक्त सूधू - आध्रातम् मेल्हिउ - मुक्त धमिउं - ध्यानं (ध्मातम् ?) लागु - लग्न, सक्त रहिउं - स्थितम् गानुं - गर्जित, स्तनित जीतुं - जितम् गोपवउं - गुप्त खयं - खणम् (क्षतम्) लवु - प्रलपित स्मरिं - स्मृतम् बोलुं - जल्पित तिरु - तीर्णम् कहउ - कथित धाउं - ध्यातम् जपु - जप्त कुरमाणुं - म्लान चुब्यु - चुम्बित उघु - निद्राण आचम्यउ - आचान्त ध्रायउ - ध्रात चापु - आक्रान्त लोचु - लोचित माडउं - प्रक्रान्त पूनुं - अर्चित, पूजित, महित सङ्क्रान्त वाछिउं - वाञ्छित, इष्ट, अभीष्ट, ईहित प्रणिमुं - प्रणत मूछिउं - मूच्छित वांद्यउ - वन्दित
SR No.520554
Book TitleAnusandhan 2010 12 SrNo 53
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2010
Total Pages187
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size845 KB
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